Shardiya Navratri 2024: सौभाग्य की देवी मां शैलपुत्री की पूजा से मिलते हैं सभी सुख, लिक्ड फुटेज में देखें आलोकिक कथा
राजस्थान न्यूज़ डेस्क !!! नवरात्रि के 9 दिन भक्ति और साधना के लिए बहुत पवित्र माने जाते हैं। इसके पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है। शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं। हिमालय पर्वतों का राजा है। वह अटल है, उसे कोई हिला नहीं सकता. जब हम भक्ति का मार्ग चुनते हैं तो हमारे हृदय में भगवान के प्रति उतना ही दृढ़ विश्वास होना चाहिए, तभी हम अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं। यही कारण है कि नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
माँ शैलपुत्री की कथा
माता शैलपुत्री को सती के नाम से भी जाना जाता है। इनकी कथा इस प्रकार है- एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ करने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने सभी देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा, लेकिन भगवान शिव को नहीं। देवी सती यह अच्छी तरह से जानती थीं कि उनके पास निमंत्रण आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह उस यज्ञ में जाने के लिए उत्सुक थी, लेकिन भगवान शिव ने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें यज्ञ में जाने का कोई निमंत्रण नहीं मिला है इसलिए वहां जाना उचित नहीं है. सती नहीं मानीं और बार-बार यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं। सती की अवज्ञा के कारण शिव को उनकी बात माननी पड़ी और उन्हें अनुमति देनी पड़ी।
जब सती अपने पिता प्रजापित दक्ष के पास पहुंची तो उन्होंने देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम से बात नहीं कर रहा है। सभी ने मुँह फेर लिया और केवल उसकी माँ ने उसे स्नेहपूर्वक गले लगाया। उनकी बाकी बहनें उनका मजाक उड़ा रही थीं और यहां तक कि सती के पति भगवान शिव का भी तिरस्कार कर रही थीं। स्वयं दक्ष ने भी अपमान करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा। ऐसा व्यवहार देखकर सती को दुःख हुआ। अपना और अपने पति का अपमान उनसे बर्दाश्त नहीं हुआ...और फिर अगले ही पल उन्होंने ऐसा कदम उठाया जिसकी कल्पना खुद दक्ष ने भी नहीं की होगी।
सती ने उसी यज्ञ की अग्नि में अपनी आहुति दे दी। जैसे ही यह बात भगवान शिव को पता चली तो वह दुखी हो गए। दुःख और क्रोध की ज्वाला में जलते हुए शिव ने उस यज्ञ को नष्ट कर दिया। इस सती ने पुनः हिमालय पर्वत पर जन्म लिया और वहां जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।
शैलपुत्री का एक नाम पार्वती भी है। उनका विवाह भी भगवान शिव से हुआ था
माना जाता है कि मां शैलपुत्री का वास काशी नगरी वाराणसी में है। यहां शैलपुत्री का बहुत प्राचीन मंदिर है, जिसके बारे में मान्यता है कि यहां मां शैलपुत्री के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। यह भी कहा जाता है कि जो भी भक्त नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा को मां शैलपुत्री के दर्शन करता है, उसके वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। मां शैलपुत्री का वाहन वृषभ होने के कारण इन्हें वृषारुड़ा भी कहा जाता है। उनके बाएं हाथ में कमल और दाहिने हाथ में त्रिशूल है।