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सावन के पहले सोमवार करे भगवान शिव के सबसे शक्तिशाली श्री रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ, 3 मिनट के इस शानदार वीडियो में जाने विधि और सही समय

 

सावन का पहला सोमवार हमेशा से शिवभक्तों के लिए वर्ष का सबसे प्रतीक्षित दिन माना जाता है। इस बार 14 जुलाई 2025 को आते इस पावन अवसर पर देश‑भर के मंदिरों में रुद्राभिषेक, शिवलिंग पर जलाभिषेक और बेलपत्र अर्पित करने की तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो आज का दिन ग्रह‑नक्षत्रों की अनूठी संगति—विशेषतः चंद्र‑वृषभ योग—के कारण और भी फलदायी है। ऐसे में अगर श्री रुद्राष्टकम का सामूहिक पाठ या घर पर श्रद्धापूर्वक जप किया जाए, तो माना जाता है कि स्वयं भगवान महादेव शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/eVeRwQyCmVA?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/eVeRwQyCmVA/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="Shree Rudraashtakam | श्री रुद्राष्टकम | Most Powerful Shiva Mantra | पंडित श्रवण कुमार शर्मा द्वारा" width="1250">
श्री रुद्राष्टकम: उत्पत्ति और महात्म्य
श्री रुद्राष्टकम भगवान शिव की स्तुति में रचित वह अष्टक है जिसे गोस्वामी तुलसीदास ने अपने महाकाव्य रामचरितमानस के उत्तरकांड में स्थान दिया। संस्कृत के अनूठे छंद “नमामीशमीशान निर्वाणरूपं...” से आर भूत, यह स्त्रोत शिव के त्रिगुणातीत, तेजपूर्ण और करुणामय स्वरूप का निरूपण करता है। पुराणों के अनुसार रुद्राष्टकम का नित्य पाठ अनंत जन्मों के पापकर्म नाश करने वाला और मन‑वांछित वरदान प्रदान करने वाला माना गया है। सावन के सोमवार पर इसका गान शिव‑तत्व के साथ साधक की एकाकी भावनात्मक एकता को साधता है।

सावन सोमवार का धार्मिक महत्व
सावन (श्रावण) मास स्वयं में शिव‑उपासना के लिए सर्वोत्तम माना गया है; किंवदंती है कि समुद्र‑मंथन के समय निकले विष का पान कर भोलेनाथ ने धरती को महाविपत्ति से बचाया—और वही करुणा आज भी सावन के निरंतर जलाभिषेक के रूप में स्मरण की जाती है। श्रुति‑स्मृति बताती हैं कि जो भक्त पहले सोमवार पर व्रत रखकर शिवलिंग पर गंगा‑जल चढ़ाते हुए रुद्राष्टकम गाता है, उसके जीवन में दरिद्रता, रोग और मानसिक क्लेश का नाश होता है।

पूजन‑विधि और शुभ मुहूर्त
पंडितों के मुताबिक आज ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 04:16 से 04:57 बजे तक रहेगा, जो मंत्र‑जाप और ध्यान के लिए सर्वश्रेष्ठ है। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:08 से 12:58 तक तथा प्रदोषकाल सायं 18:58 से 21:12 तक रहेगा। यदि आप घर पर पूजा कर रहे हैं, तो निम्न क्रम अपनाएँ:

स्वच्छ स्नान कर सफ़ेद या हल्के नीले वस्त्र धारण करें।
घर के पूजाघर या उत्तर‑पूर्व दिशा में लकड़ी के पाटे पर शिवलिंग स्थापित करें।
गंगाजल से संकल्प और पवित्रीकरण करें, फिर जल‑दूध‑मधु‑घी‑दही से रुद्राभिषेक करें।
बेलपत्र, भस्म, कुश और कनेर के पुष्प चढ़ाएँ।
धूप‑दीप प्रज्ज्वलित कर श्री रुद्राष्टकम का कम‑से‑कम 11 बार पाठ करें।
अंत में आरती कर नैवेद्य अर्पित करें और परिवार सहित प्रसाद ग्रहण करें।

वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ
आधुनिक आयुर्वेदिक‑योग विशेषज्ञों का मत है कि रुद्राष्टकम के उच्चारण में ‘रु’, ‘त्र’ और ‘ं’ जैसे उच्च स्वराघात होते हैं जो वोकल कॉर्ड्स और ब्रेन‑वेव्स को एक विशिष्ट कंपन देते हैं। यह कंपन पैरासिम्पैथेटिक नर्वस सिस्टम को सक्रिय कर तनाव कम करता है और एकाग्रता बढ़ाता है। नाद‑योग के दृष्टिकोण से यह स्तोत्र मस्तिष्क के मध्य स्थित पीनियल ग्रंथि को सक्रिय कर मेलाटोनिन स्राव नियंत्रित करता है, जिससे निद्रा‑गुणवत्ता और भावनात्मक संतुलन सुधरता है।

सामाजिक महत्ता: सामूहिक पाठ की परंपरा
हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और काशी जैसे शिव‑धामों में आज हजारों श्रद्धालु सामूहिक रुद्राष्टकम पाठ का आयोजन करेंगे। काशी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा‑आरती के पूर्व शाम सात बजे 108 विद्वानों द्वारा विशाल रुद्राष्टकम गान की तैयारी है। आयोजक पं. विश्वेश्वर त्रिपाठी बताते हैं—“सामूहिक जप से उत्पन्न ध्वनि‑कल्प आवृत वातावरण को नवस्पंदित कर दैवीय ऊर्जा प्रवाहित करता है। इससे स्थानीय समुदाय में सकारात्मकता और सहकार बढ़ता है।”

आर्थिक‑व्यावसायिक दृष्टि से शुभ संकेत
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनिरुद्ध मिश्र के अनुसार आज चंद्रमा वृषभ राशि, शुक्र स्वगृही और बृहस्पति अनुकूल भाव में हैं। ऐसे में जिन्होंने नये व्यावसायिक सौदे या निवेश का संकल्प लिया है, वे रुद्राष्टकम पाठ कर शिव‑आशीर्वाद लेकर कार्यारम्भ करें—लाभ के संकेत प्रबल हैं। विशेषकर मूलांक 5, 6 और 9 वालों के लिए दिन अप्रत्याशित धन‑लाभ वाला बताया गया है।

सतर्कताएँ और पर्यावरण संदेश
भक्तों से अपील है कि दूध‑अभिषेक के उपरांत बचे दूध को विसर्जित करने के बजाय गाय‑आहार या ज़रूरतमंदों में बाँटें। साथ‑ही प्लास्टिक‑मुक्त बेलपत्र और गंगाजल की शीशियाँ प्रयोग करें। यह स्वयं शिव‑तत्व—प्रकृति‑रक्षा—की सच्ची सेवा होगी।