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आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर पढ़ें उनसे जुड़े कुछ रोचक प्रसंग

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क: 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को भारत में पूरे उत्साह और खुशी के साथ राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता हैं स्वामी विवेकानंद का जन्म पौष माह की कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि में साल 1863 में 12 जनवरी को हुआ था। स्वामी विवेकानंद का जन्म दिवस हर साल रामकृष्ण मिशन के केन्द्रों पर रामकृष्ण मठ और उनकी कई शाखा केन्द्रों पर भारतीय संस्कृति और परंपरा के अनुसार मनाया जाता है

इसे आधुनिक भारत के निर्माता स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस को याद करने के लिए मनाया जाता है राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस को मनाने के लिए साल 1984 में भारतीय सरकार द्वारा इसे पहली बार घोषित किया गया था तब से स्वामी विवेकानंद की जयंती 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती हैं तो आज हम आपको स्वामी विवेकानंद जी से जुड़े कुछ ऐसे रोचक और अनुसने प्रसंग के बारे में बता रहे हैं जो आपे पहले नहीं पढ़ें होंगे तो आइए जानते हैं। 

अलवर के दीवान राजा मंगल सिंह ने विवेकानंद को मुलाकात के लिए 1891 में बुलावा भेजा। मंगल सिंह ने विवेकानंद से कहा स्वामीजी ये सभी लोग मूर्तिपूजा करते हैं मैं मूर्ति पूजा में यकीन नहीं करता। मेरा क्या होगा। पहले तो स्वामी जी ने कहा कि हर किसी को उसका विश्वास मुबारक। फिर कुछ सोचते हुए स्वामी जी ने राजा को चित्र लाने के लिए कहा जब दीवार से उतार कर राजा का तैल चित्र लाया गया तो स्वामी जी ने दीवान से तस्वीर पर थूकने के लिए कहा। दीवान उनकी बात से अजीब निगाहों से उन्हें देखने लगे।

तब स्वामी जी ने कहा कि यह तो मात्र एक कागज का टुकड़ा है फिर भी आपको इसमें हिचक महसूस हो रही है क्योंकि आप सबको पता है कि ये आपके राजा का प्रतीक हैं स्वामी जी ने राजा से कहा आप जानते है कि ये केवल चित्र है फिर भी इस पर ​थूकने पर आप अपमानित महसूस करेंगे। यही बात उन सभी लोगों पर लागू होती है जो लकड़ी, मिट्टी और पत्थर से बनी मूर्ति की पूजा करते हैं वो इन धातुओं की नहीं बल्कि अपने ईश्वर के प्रतीक की पूजा करते हैं। 


  
स्वामी विवेकानंद नियम और कायदे के पक्के थे। जो नियम उन्होंने बनाए थे वे सबके ऊपर लागू होते थे। स्वामी विवेकानंद के मठ में किसी भी औरत का प्रवेश निषिद्ध था। एक बार स्वामी जी बीमार हो गए ऐसे में उनके शिष्यों ने उनकी माता को उन्हें देखने के लिए मठ में प्रवेदश दे दिया लेकिन स्वामी जी इस बात पर बहुत क्रोधित हुए विवेकानंद ने अपने शिष्यों को डांटते हुए कहा, तुम लोगों ने एक महिला को अंदर क्यों आने दिया। मैंने ही नियम बनाया और मेरे लिए ही नियमों को तोड़ा जा रहा है विवेकानंद ने शिष्यों से साफ कह दिया कि मठ के किसी नियम को उनके लिए भी नहीं तोड़ा जाएं।