Chanakya Niti: इन कारणों से व्यक्ति को होना पड़ता है दुखी
आचार्य चाणक्य ने मनुष्य के जीवन से जुड़ी कई सारी नीतियां बनाई हैं चाणक्य ने जीवन में दुख और कष्ट देने वाले बंधनों के बारे में भी बताया हैं। चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति अपना पूरा जीवन दुख कष्ट देने वाले बंधनों को दूर करने के प्रयास में ही झोंक देता हैं
बन्धाय विषयाऽऽसक्तं मुक्त्यै निर्विषयं मनः।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ॥
श्लोक के माध्यम से चाणक्य ने मन को समस्त बंधनों और दुखों का एक मात्र कारण बताया हैं वे कहते हैं कि मोक्ष प्राप्ति के लिए ही भगवान जीवात्मा को मानव जीवन प्रदान करता हैं मगर इंसान जीवन पाकर काम, क्रोध, लोभ, मद और मोह आदि में लिप्त हो जाता हैं इससे मनुष्य अपने वास्तविक लक्ष्य से भटक जाता हैं चाणक्य ने इन सबका एकमात्र कारण मन को बताया हैं।
चाणक्य कहते हैं कि मन ही व्यक्ति को विषय वासनाओं की ओर धकेलकर उसे पाप कर्म की ओर अग्रसर करता हैं मन के वश में रहने वाला मनुष्य जीवन और मृत्यु के चक्र से कभी मुक्त नहीं हो पाता हैं। चाणक्य के मुताबिक व्यक्ति को अपने मन के सभी विकारों से मुक्त कर लेना चाहिए और उसे अपने वश में करना चाहिए। ऐसा करने से ही उसका परलोक में कल्याण संभव होता हैं।