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श्राद्ध और पिंडदान का महत्व, जानिए

 

आपको बता दें, की श्राद्ध हिंदू धर्म के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता हैं वही श्राद्ध यानी की श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान देना। वही पितृपक्ष जिसे महालय या फिर श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता हैं, श्राद्ध पक्ष अपने पूर्वजों को जो इस धरती पर नहीं हैं। वही एक विशेष समय में 16 दिनों की अवधि तक सम्मान देना होता हैं वही इस अवधि को ही पितृपक्ष मतलब की श्राद्ध पक्ष कहा जाता हैं वही हिंदू धर्म में श्राद्ध का अधिक महत्व होता हैं।

वही वैदिक ज्योतिष के मुताबिक जब सूर्य का प्रवेश कन्या राशि में हो जाता हैं, तो उसी दौरान पितृ पक्ष मनाया जाता हैं वही पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान को सर्वोत्तम माना जाता हैं। पिंडदान और श्राद्ध पूजा के लिए गया की धरती बहुत ही शुभ मानी जाती हैं इसे हिंदू धर्म शास्त्रों में विशेष महत्व दिया गया हैं। गया की भूमि को पांचवां धाम भी माना जाता हैं वही ऐसी मान्यता हैं कि गया में पिंडदान और श्राद्ध पूजा करने से पितरों को मुक्ति मिल जाती हैं। गया भारत के बिहार राज्य में स्थित हैं, भगवान श्री हरि विष्णु ने इसी स्थान पर गयासुर नाम के एक राक्षस का वध किया था। जिसकी वजह से इसका नाम गया पड़ गया। वही ऐसी भी मान्यता हैं कि भगवान श्री हरि के चरण गया में उपस्थित हैं। वही बता दें कि गया जो फल्गु नामक एक नदी पर स्थित हैं, त्रेता युग में भगवान श्री राम और देवी मां सीता ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था। तभी से इस जगह महत्व और भी अधिक बढ़ गया।

श्राद्ध यानी की श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के प्रति सम्मान देना। वही पितृपक्ष जिसे महालय या फिर श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता हैं, श्राद्ध पक्ष अपने पूर्वजों को जो इस धरती पर नहीं हैं। वही एक विशेष समय में 16 दिनों की अवधि तक सम्मान देना होता हैं वही इस अवधि को ही पितृपक्ष मतलब की श्राद्ध पक्ष कहा जाता हैं श्राद्ध और पिंडदान का महत्व, जानिए