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पितृपक्ष की हर तिथि का है अपना अलग महत्व

 

हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक पितृगणों का श्राद्ध कर्म करने के लिए साल में 96 अवसर मिलते हैं वही साल के 12 महीने में 12 अमावस्या तिथि को भी श्राद्ध किया जा सकता हैं वही श्राद्ध कर्म करने से तीन पीढ़ियों के पूर्वजों को तर्पण किया जा सकता हैं वही श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक होता हैं वही श्राद्ध पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा करते हैं वही जिनके घर में पुरुष सदस्य नहीं होते हैं, उनमें महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं वही पितृ पक्ष में सभी तिथियों का अलग अलग महत्व होता हैं वही जिन मनुष्यों की मृत्यु जिस तिथि पर होती हैं, वही पितृपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध कर्म किया जाता हैं।

वही पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष शुरू हो चुका हैं वही प्रतिपदा तिथि पर नाना नानी के परिवार में किसी की मृत्यु हुई हो और मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो उसका श्राद्ध प्रतिपदा पर किया जाता हैं वही पंचमी तिथि पर अगर किसी अविवाहित मनुष्य की मृत्यु हो जाती हैं तो उसका श्राद्ध इस तिथि पर करना चाहिए। वही अगर किसी महिला की मृत्यु हो गई हैं और मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हैं तो उसका श्राद्ध नवमी तिथि पर किया जाता हैं। वही एकादशी पर मृत संन्यासियों का श्राद्ध किया जाता हैं जिनकी मृत्यृ किसी दुर्घटना में हो गई हैं, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करना चाहिए। वही सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर ज्ञात अज्ञात सभी पितरों के लिए श्राद्ध करना चाहिए। जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता हैं। वही श्राद्ध कर्म को करने से पितरों का ऋण भी समाप्त हो जाता हैं।

पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष शुरू हो चुका हैं वही प्रतिपदा तिथि पर नाना नानी के परिवार में किसी की मृत्यु हुई हो और मृत्यु तिथि ज्ञात न हो तो उसका श्राद्ध प्रतिपदा पर किया जाता हैं वही पंचमी तिथि पर अगर किसी अविवाहित मनुष्य की मृत्यु हो जाती हैं तो उसका श्राद्ध इस तिथि पर करना चाहिए। वही अगर किसी महिला की मृत्यु हो गई हैं और मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हैं पितृपक्ष की हर तिथि का है अपना अलग महत्व