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काशी में शिव संग करें विशालाक्षी शक्तिपीठ के दर्शन, यहां गिरे थे देवी सती के नेत्र

 

ज्योतिष न्यूज़ डेस्क:हिंदू धर्म में पूजा पाठ के साथ साथ धार्मिक स्थलों को भी विशेष महत्व दिया जाता हैं वही देश की धार्मिक राजधानी माने जानी वाली काशी बाबा विश्वनाथ के लिए ही नहीं बल्कि शक्तिपीठ के लिए भी जानी जाती हैं मान्यता है कि जिन स्थानों पर देवी के अंग गिरे वो सभी स्थान शक्ति पीठ बन गए। जहां पर भगवती सती का कर्णकुंडल गिरा आज वह पावन स्थान मां विशालाक्षी के पावन धाम के रूप में जाना जाता हैं

मान्यता है कि भगवान शिव ने इन भी शक्तिपीठों पर जाकर साधना की और अपने स्वरूप से काल भैरव को उत्पन्न किया। वाराणसी में भी इस शक्तिपीठ के समीप काल भैरव विराजमान हैं भक्ति, शक्ति और समृद्धि प्रदान करने वाले पावन शक्तिपीठों में से एक है मां विशालाक्षी देवी का दिव्य धाम। तो आज हम आपको इसके बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं तो आइए जानते हैं। 

वाराणसी स्थित इस पावन शक्तिपीठ को स्थानीय लोग दक्षिण की देवी के रूप में जानते हैं मंदिर की बनावट में दक्षिण भारतीय कलाकृतियों के दर्शन होते हैं माता विशालाक्षी देवी का यह मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक बाबा विश्वनाथ के पावन धाम के समीप मीरघाट मोहल्ले में स्थित हैं। प्राचीन काशी नगरी शिव और शक्ति दोनों का एक प्रमुख केंद्र हैं मां गंगा के तट पर बसी काशी नगरी में आने वाला तीर्थयात्री गंगा स्नान के बाद बाबा विश्वनाथ के दर्शनों के साथ आद्यशक्ति के र्शन करना नहीं भूलता हैं क्योंकि इससे उसे शिव और शक्ति दोंनो का ही आशीर्वाद मिलता हैं। 

वही काशी के इस शक्तिपीठ में माता विशालाक्षी की दो प्रतिमा हैं एक चल और दूसरी अचल। दोनों ही प्रतिमाओं का समान रूप से पूजा अभिषेक आदि होता हैं चल मूर्ति की विशेष पूजा नवरात्रि के समय विजयादशमी पर्व वाले दिन घोड़े पर बैठा कर की जाती हैं जबकि अचल मूर्ति की विशेष पूजा साल में दो बार की जाती हैं जिसमें से एक भादौं तृतीया के दिन माता की जयंती के रूप में, तो दूसरी दीपावली के दूसरे दिन माता का अन्नकूट करके किया जाता हैं जबकि चैत्र के नवरात्रि में मां विशालाक्षी का नव गौरियों में पंचमी के दिन माता जी का दर्शन होता हैं हर माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता के दर्शन का विशेष महत्व होता हैं।