केवल हिंदू नहीं बौद्ध से लेकर इस्लामिक परंपराओं में भी दिखती है शिव की झलक, जानिए कैसे अलग-अलग धर्मों में मानी गई उनकी उपस्थिति
भगवान शिव को इस सृष्टि का संहारक कहा जाता है। उनका स्वरूप ऐसा है कि उन्हें भगवान, आस्था या मूर्ति से ज्यादा एक योगी और आध्यात्मिक गुरु माना जाता है। उन्हें आदि और अंत माना जाता है। उन्हें रचयिता और संहारक दोनों कहा जाता है। यही वजह है कि कई धर्मों की प्राचीनता में शिव का जिक्र मिलता है या उनकी मौजूदगी मिलती है। यह बात हैरान करने वाली हो सकती है लेकिन यह सच है कि हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी उनका वर्णन या संबंध मिलता है। शिव के अन्य धर्मों से संबंध को लेकर एक तर्क दिया गया है जिसके अनुसार शिव के 7 शिष्य हैं, जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना जाता है। इन ऋषियों ने शिव के ज्ञान का संपूर्ण धरती पर प्रचार-प्रसार किया, जिसके चलते अलग-अलग धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। उनके शिष्यों के नाम हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु और भारद्वाज। इसके अलावा 8वें गौरशीर्ष मुनि भी थे। यदि भगवान शिव के शिष्यों द्वारा ज्ञान के प्रसार से अन्य धर्मों की उत्पत्ति हुई, तो इसका अर्थ यह है कि कहीं न कहीं भगवान शिव का ज्ञान अन्य धर्मों का भी आधार है। लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि अन्य धर्मों में भगवान शिव को किस तरह से दर्शाया गया है या उनका संबंध किससे दर्शाया गया है। तो, आइए जानते हैं इसके बारे में...
भगवान शिव का ज्ञान कई धर्मों का आधार है
हिंदू धर्म के अलावा अरब के मुशरिक, यजीदी, सबियन, सुबी और अब्राहमिक धर्मों में भी भगवान शिव की झलक देखने को मिलती है। इसका कारण यह बताया जाता है कि इस्लाम से पहले मध्य एशिया का मुख्य धर्म पैगन था, जो हिंदू धर्म की ही एक शाखा थी और इसमें शिव पूजा प्रमुख थी। सिंधु घाटी समेत मध्य एशिया की कई प्राचीन सभ्यताओं की खुदाई में शिवलिंग या नंदी की मूर्ति मिली है, जो इस बात का संकेत है कि पूरे एशिया में भगवान शिव की पूजा प्रचलित थी।
जैन धर्म में भगवान शिव का वर्णन
जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। वैसे तो हिंदू पहले तीर्थंकर को भी अवतार मानते हैं, लेकिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार। पहले तीर्थंकर में कई ऐसी झलकें मिलीं, जिसमें भगवान शिव दिखाई दिए।
बौद्ध धर्म में शिव
बौद्ध धर्म में बुद्ध को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। उनका जन्म भगवान शिव के रूप में हुआ था। बौद्ध धर्म के ग्रंथों में बुद्ध के तीन बहुत प्राचीन नाम हैं- तनहंकर, शंहंकर और मेघंकर। प्राचीन काल में भी बौद्ध और शिव मंदिर संयुक्त रूप से बनाए गए थे।
इस्लाम और शिव
इस्लाम के कुछ बुद्धिजीवी भगवान शिव को अपना पहला पैगम्बर मानते हैं। हालांकि, इसे लेकर हिंदुओं में मतभेद है, लेकिन कुछ हिंदुओं के अनुसार प्राचीन काल में सबसे पहले शिव की पूजा मक्का के पवित्र स्थान काबा में की गई थी।
ईसा मसीह और शिव
ईसा मसीह पर लिखी गई पुस्तक 'द सेकेंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट: द रिसरेक्शन ऑफ क्राइस्ट विदिन यू' के लेखक स्वामी परमहंस योगानंद के अनुसार, ईसा मसीह का नाम तीन भारतीय विद्वानों ने जीसस रखा था। भगवान शंकर के लिए 'ईश' या 'ईशान' शब्द का प्रयोग किया जाता है। कहा जाता है कि ईसा मसीह ने शिव भक्त महाचेतना नाथ के आश्रम में रहकर ध्यान किया था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि ईसा मसीह शब्द की उत्पत्ति शिव शब्द से हुई है। हिंदू धर्म ग्रंथ भविष्य पुराण में भी ईसा मसीह का उल्लेख है।
पारसी धर्म और शिव
ईरान के निवासी अत्रि वंश के माने जाते हैं। अत्रि ऋषि भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे, जिनके एक पुत्र का नाम दत्तात्रेय था। अत्रि लोग ही सिंधु पार करके पारस गए थे, जहां पारसी धर्म की शुरुआत हुई।
सिख धर्म और शिव
शैव धर्म यानी शिव को मानने वाले, सिख धर्म में उनकी गुरु-शिष्य परंपरा देखने को मिलती है। 'एक ओंकार सतनाम' को आगे सुनेंगे तो समझ में आएगा कि सिख धर्म में श्री और काल शब्दों का महत्व है और शिव को कालपुरुष और महाकाल कहा जाता है।
शिव का प्रचार-प्रसार
प्राचीन काल से ही शैव समुदाय के लोग शिव की पूजा करते आ रहे हैं। भगवान शिव के साथ रहे ऋषियों के अलावा बाद में उनके कई अनुयायियों ने उनके ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया, जिसका प्रमाण खुदाई के दौरान मिले अवशेषों से मिलता है।