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जानिए शिव रुद्राष्टकम की ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि, वीडियो में जानिए कब-क्यों और किसने की इसकी रचना?

 

हिंदू धर्म में भगवान शिव की आराधना अनादिकाल से होती आ रही है। त्रिदेवों में प्रमुख स्थान रखने वाले शिव को संहारक, योगी और करुणामय देव के रूप में जाना जाता है। शिव की स्तुति के लिए कई मंत्र, स्तोत्र और श्लोकों की रचना की गई है, लेकिन उनमें से एक विशेष स्तोत्र — ‘शिव रुद्राष्टकम’ — भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय और चमत्कारी माना जाता है। यह केवल एक धार्मिक काव्य नहीं, बल्कि एक गहन भक्ति, दर्शन और आत्म surrender की गूंज है।

<a href=https://youtube.com/embed/eVeRwQyCmVA?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/eVeRwQyCmVA/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" style="border: 0px; overflow: hidden"" title="Shree Rudraashtakam | श्री रुद्राष्टकम | Most Powerful Shiva Mantra | पंडित श्रवण कुमार शर्मा द्वारा" width="695">

रचयिता कौन थे?
‘शिव रुद्राष्टकम’ की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी, जो रामचरितमानस के महान रचयिता के रूप में भी विख्यात हैं। तुलसीदास 16वीं शताब्दी के संत, कवि और भक्त थे। उन्होंने भगवान राम की भक्ति में अनेक ग्रंथों की रचना की, लेकिन उनका शिव भक्ति से भी उतना ही गहरा संबंध था। शिव रुद्राष्टकम उनकी उसी भक्ति का अद्भुत प्रमाण है।यह स्तोत्र संस्कृत में लिखा गया है और अष्टक छंद में रचित है, यानी इसमें आठ पद होते हैं। इसे तुलसीदास ने अपनी रचना ‘रामचरितमानस’ के बालकांड में रखा है, जहाँ भगवान शिव की स्तुति कर वे श्रीराम कथा की शुरुआत करते हैं।

शिव रुद्राष्टकम का आध्यात्मिक रहस्य
शिव रुद्राष्टकम केवल काव्य रूप में सुंदर नहीं है, यह भक्त के हृदय को सीधा शिव तत्व से जोड़ने का माध्यम बनता है। इसमें भगवान शिव को निर्गुण, निराकार, अविनाशी और ब्रह्म स्वरूप बताया गया है। एक-एक श्लोक गहरे दर्शन और शिव के रहस्यमय स्वरूप को उजागर करता है। जैसे एक श्लोक में तुलसीदास लिखते हैं:

“नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्”
(मैं उस ईशान रूप, निर्वाण स्वरूप, सर्वव्यापक, ब्रह्मस्वरूप और वेदस्वरूप शिव को नमस्कार करता हूँ)यहाँ शिव को ब्रह्म कहा गया है – जो न आदि है, न अंत है। वे ही संहार के स्वामी हैं, लेकिन वे ही मोक्ष का द्वार भी खोलते हैं। तुलसीदास ने शिव को न केवल एक पूज्य देवता के रूप में देखा, बल्कि उन्हें समस्त ब्रह्मांड की चेतना का प्रतीक माना।

कब और कैसे पढ़ें रुद्राष्टकम?
रुद्राष्टकम का पाठ विशेष रूप से सोमवार, महाशिवरात्रि, प्रदोष व्रत और किसी संकट के समय किया जाता है। सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर शिवलिंग के सामने रुद्राष्टकम का पाठ किया जाए तो मानसिक शांति, रोगों से मुक्ति, पारिवारिक सुख और आध्यात्मिक उन्नति मिलती है।ध्यान रखना चाहिए कि इसे भावना और श्रद्धा से पढ़ना अधिक महत्वपूर्ण है, न कि केवल लय या उच्चारण के लिए।

रुद्राष्टकम से जुड़ी मान्यता
मान्यता है कि रुद्राष्टकम के नियमित पाठ से व्यक्ति को शिव के साक्षात अनुभव होने लगते हैं। यह साधक को ‘रुद्र’ अर्थात् जाग्रत चेतना से जोड़ता है। यह श्लोक आत्मा को भय, मोह और दुख से मुक्त कर देता है और जीवन में स्थिरता लाता है।