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Video: श्मशान में करते हैं साधना, मुर्दे का खाते हैं मांस! जानिए कैसी होती है अघोरियों की जिंदगी

 

अघोर पंथ एक ऐसा समाज है जिसकी गतिविधियां और साधना का मार्ग अत्यंत रहस्यमय समझा जाता है। अघोर शब्द खुद में जितने रहस्य समेटे है, उससे कम अद्भुत नहीं है इस पंथ की कथा। इनकी पूजन पद्धति, व्यवहार और रहस्मय क्रियाएं इनके प्रति आश्चर्य, भय और कौतुहल पैदा करते हैं।

शिव के हैं साधक

अघोर पंथी खुद को शिवजी का उपासक मानते हैं। मुख पर भस्म, समाज से दूर एकांत में वास, श्मशान में उपासना जैसे बिंदु यह सिद्ध करते हैं कि अघोरियों की ये क्रियाएं शिवजी से काफी मिलती हैं।

अघोरियों का विचित्र संसार

अघोर पंथ के साधकों का संसार भी विचित्र है। सबसे पहले तो यहां दीक्षा लेना ही काफी कठिन है। विभिन्न परीक्षण से गुजरने के बाद ही कोई व्यक्ति अघोरपंथ में शामिल होता है। इसके बाद शुरू होता है साधना का चक्र जो बहुत मुश्किल समझा जाता है।

दुनिया से न्यारी इनकी कहानी

अघोरियों का संसार आम लोगों की दुनिया से कहीं अलग है। ये लोगों से अलग रहते हैं और आम समाज में घुलना—मिलना पसंद नहीं करते। कारण है — मोह की उत्पत्ति। माना जाता है कि आम लोगों के बीच में रहने से साधना में व्यवधान आते हैं। इससे मोह का बंधन मजबूत होता है और साधना अधूरी ही रह जाती है।

क्यों लगाते हैं भस्म

अघोर पंथ सुंदर—असुंदर के भेद से अलग है। इसके अनुयायी चेहरे और शरीर के विभिन्न अंगों पर भस्म लगाते हैं। यह भस्म आम ईंधन से बनी राख नहीं होती। यह श्मशान घाट में मुर्दों की जली हुई चिता की राख होती है जिसे अघोरी बहुत प्रेम से अपने चेहरे पर लगाते हैं। इसका अर्थ है कि ये मृत्यु से नहीं डरते और सदैव उसका स्मरण करते रहते हैं। भस्म रमाना सभी लौकिक भेद मिटाने का प्रतीक भी है।

खाते हैं मुर्दे का मांस

अघोरियों के बारे में कहा जाता है कि वे मुर्दे का मांस खाते हैं। जी हां, यह कथन बिल्कुल सच है। अघोर पंथ की क्रियाओं में मुर्दे का मांस खाना भी शामिल है। ये जलती हुई चिताओं से मुर्दे को निकालकर उसका मांस खाते हैंं। इसके बिना साधना अधूरी समझी जाती है। ऐसा कर वे स्वयं को शिवजी के गण के समान समझते हैं जो हर पदार्थ को खाने की क्षमता रखते हैं।

महिलाएं भी हैं शामिल

अघोरपंथ में न केवल पुरुष, बल्कि महिलाएं भी शामिल हैं। आमतौर पर यह समझा जाता है कि अघोरपंथ जैसे विचित्र एवं रहस्मय संसार में सिर्फ पुरुषों को ही प्रवेश का अधिकार है, लेकिन यह पूर्णत: सच नहीं है। महिलाएं भी अघोरपंथ में दीक्षित हो सकती हैं। इस पंथ की मान्यता के अनुसार, पार्वती ने तपस्या कर शिव को प्राप्त कर लिया था जो संपूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हैं। अत: महिला अघोरी भी तपस्या कर सिद्धि प्राप्त कर सकती है।

(यह तो सिर्फ एक झलक थी। अघोरियों की दुनिया की असल तस्वीर तो अभी बाकी है। हम बताएंगे आपको इनकी जिंदगी से जुड़ी ऐसी बातें जो रोंगटे खड़े कर देंगी। तो पढ़ना न भूलें — शुक्रवार को रात 9.30 बजे।)