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काशी में ज्योतिष पीठ के अगले शंकराचार्य की नियुक्ति पर कार्यवाही प्रारंभ

 

काशी में ज्योतिष पीठ के अगले शंकराचार्य की नियुक्ति पर कार्यवाही प्रारंभ

मठ परंपरा में गुरु शिष्य परंपरा के आधार पर संन्यासी को शंकराचार्य के पद पर बिठाने का नियम है। 1953 में स्वामी ब्रह्मानंद की मृत्यु के बाद उनकी वसीयत के आधार पर शांतानंद सरस्वती, द्वारका प्रसाद शास्त्री, विष्णुद्वानंद सरस्वती और परमानंद सरस्वती को आचार्य पद के लिए नामांकित किया गया। परन्तु ये सभी न्यायालय के द्वारा अयोग्य घोषित किये गये। इस पद पर स्वामी करपात्री जी महाराज के नाम का भी प्रस्ताव किया गया था लेकिन उनहोने पद स्वीकार नहीं किया। 25 जून, 1953 को स्वामी कृष्णबोधाश्रम का अभिषेक किया गया। 20 मई, 1973 को कृष्णबोधाश्रम की मृत्यु के बाद 12 सितंबर, 1973 को इस पद पर ब्रह्मानंद के शिष्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का अभिषेक किया गया था। भारत धर्म महामंडल ने इसको स्वीकार किया था, परन्तु फिर विवाद उत्पन्न हो गया। 1989 में स्वामी वासुदेवानंद ने स्वयं को ब्रह्मानंद का शिष्य बताते हुए पीठ का शंकराचार्य घोषित कर दिया। इस पर न्यायालय में विवाद चलने लगा। सिविल जज इलाहाबाद ने 2015 में वासुदेवानंद को दंड, छत्र, चंवर धारण करने पर रोक लगा दी। तत्पश्चात 22 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वासुदेवानंद और स्वरूपानंद दोनों को अयोग्य मानते हुए शंकराचार्य की नियुक्ति पर कार्य प्रारंभ किया।

काशी में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए नामाकिंत भारत धर्म महामंडल ने शारदा पीठ, शृंगेरी पीठ और पुरी पीठ के शंकराचार्यों से नए शंकराचार्य के नाम पर राय मांगी है। मंगलवार शाम को हुई  महामंडल की बैठक में निर्वाचक मंडल का गठन करने पर चर्चा की गई। काशी विद्वत परिषद नए शंकराचार्य के नाम पर एक राय बनाने के लिए 28 नवंबर को  बैठक करेगी। 22 सितंबर को हाईकोर्ट ने कहा था कि भारत धर्म महामंडल, विद्वत परिषद के साथ- साथ तीनों पीठों के शंकराचार्य योग्य विद्वान को ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य के पद पर बैठाने का निर्णय लें।