सावन के इस पावन महीने में जाने कैलाश पर्वत के रहस्यमयी गुप्त द्वार, वायरल क्लिप में जाने कौन कर सकता है इसमें प्रवेश ?
एक ऐसी जगह की कल्पना कीजिए जहाँ समय थम सा जाए। जहाँ कदम रखते ही हवा की गति बदल जाए। जहाँ आप अकेले हों पर अकेलापन महसूस न करें। जहाँ पहाड़ के सन्नाटे में भी एक रहस्यमयी ध्वनि गूंजती हो। वो जगह है कैलाश पर्वत। हिमालय की गोद में बसा यह दिव्य शिखर सिर्फ़ एक पर्वत नहीं, एक जीवंत रहस्य है। यह अपनी ऊँचाई से ही नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व से भी मंत्रमुग्ध कर देता है। कहते हैं कि यहाँ का हर पत्थर, बर्फ की हर परत, हर शून्य कुछ कहता है... लेकिन क्या हम सुन पाते हैं? यह सिर्फ़ एक तीर्थ नहीं... एक द्वार है। लेकिन सवाल यह है कि द्वार किस दिशा की ओर है? किस लोक की ओर? और क्या वह लोक भगवान शिव का दूसरा धाम है?
तिब्बत में स्थित यह पर्वत 21,778 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, लेकिन दुनिया का सबसे ऊँचा शिखर न होते हुए भी इसे सबसे पवित्र पर्वत माना जाता है। यह पर्वत चारों धर्मों - हिंदू, बौद्ध, जैन और बॉन परंपरा - की आस्था का केंद्र है। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि इस बात का संकेत है कि इस जगह में कुछ असाधारण है। चार प्रमुख नदियाँ - ब्रह्मपुत्र, सिंधु, कर्णाली और सतलुज - इसी पर्वत से निकलती हैं। यह सिर्फ़ भूगोल नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय योजना है। यहाँ कुछ ऐसा है, जो विज्ञान की समझ से परे है। हिंदू धर्मग्रंथों में, कैलाश सिर्फ़ एक स्थान नहीं, बल्कि भगवान शिव का निवास स्थान - कैलाश लोक है। यह वह स्थान है जहाँ शिव और शक्ति साक्षात् विद्यमान हैं। 'शिव पुराण' में लिखा है - "कैलाश वह धाम है जहाँ केवल शरीर ही नहीं, बल्कि केवल आत्मा ही प्रवेश कर सकती है।"
ऋषि अगस्त्य ने कहा था - "कैलाश वह स्थान है जहाँ इस लोक और परलोक की सीमाएँ मिट जाती हैं।" महर्षि वेदव्यास, वाल्मीकि, भृगु जैसे योगी वर्षों तक इसी पर्वत के पास ध्यान में लीन रहे। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि कैलाश के शिखर तक पहुँचना संभव नहीं है... क्योंकि यह कोई भौतिक ऊँचाई नहीं, बल्कि चेतना की ऊँचाई है।
कैलाश पर्वत का रहस्य
आज तक कोई भी कैलाश पर्वत के शिखर पर नहीं चढ़ पाया है। कई प्रयास किए गए... लेकिन हर बार कुछ ऐसा घटित हुआ कि पर्वतारोहियों को पीछे हटना पड़ा। कुछ मौसम के कारण रुके, कुछ मानसिक उलझनों के कारण, और कुछ किसी अदृश्य भय के कारण। रूसी पर्वतारोही एक बार शिखर तक लगभग पहुँच ही गए थे... लेकिन लौटते समय उन्होंने कहा - "वहाँ पहुँचते ही ऐसा लगा जैसे कोई शक्ति हमें भीतर की ओर खींच रही हो, और चेतना डगमगाने लगी।" तिब्बतियों का मानना है - "जो भी कैलाश पर चढ़ता है, वह पृथ्वी पर वापस नहीं लौटता।" अब प्रश्न उठता है कि क्या इस पर्वत में कोई गुप्त द्वार है? क्या यह केवल प्रतीकात्मक है या वास्तव में कोई भौतिक प्रवेश द्वार है? कई यात्रियों ने अनुभव किया है कि जब वे पर्वत की परिक्रमा करते हैं, तो कुछ स्थानों पर उन्हें ऐसा लगता है जैसे कोई सुरंग है...
मानो कोई रास्ता भीतर की ओर जाता हो। कुछ को ध्यानावस्था में दिव्य नगरी के दर्शन हुए, जहाँ उन्होंने अद्भुत प्रकाश, संगीत और अलौकिक ऊर्जा का अनुभव किया। क्या यह एक कल्पना थी? या कोई सूक्ष्म जगत? पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव कैलाश के बाहर ही नहीं, बल्कि उसके भीतर भी निवास करते हैं - सूक्ष्म जगत में। वह जगत जो हमारे अनुभव से परे है। चेतना की एक ऐसी भूमि जहाँ केवल योगी और सिद्ध संत ही पहुँच सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि कैलाश एक ऊर्जा-चक्र के केंद्र में स्थित है जहाँ पाँचवाँ आयाम सक्रिय है - वह पाँचवाँ आयाम जिसके माध्यम से चेतना अन्य लोकों में प्रवेश कर सकती है। तिब्बती परंपरा में, कैलाश को कांग रिनपोछे कहा जाता है, जिसका अर्थ है "कीमती बर्फ का रत्न"। ऐसा माना जाता है कि पर्वत के भीतर एक रास्ता शम्भाला की ओर जाता है - एक दिव्य नगरी जहाँ केवल सिद्ध आत्माएँ निवास करती हैं। बौद्ध तंत्र में, चक्रसंवर और तारा देवी के ध्यानात्मक रूपों को भी कैलाश से संबद्ध माना जाता है। बॉन परंपरा में, कैलाश को ब्रह्मांडीय संरचना के संरक्षक - सिपा होर का निवास स्थान कहा जाता है।
कैलाश से आती है दिव्य ध्वनि
क्या इन सभी परंपराओं का समान अनुभव यह सिद्ध नहीं करता कि यहाँ कुछ विशेष है? तिब्बती लोककथाओं में वर्णित है कि कभी-कभी कैलाश से एक दिव्य ध्वनि निकलती है - डमरू की। कभी-कभी रात में पर्वत की चोटी से प्रकाश निकलता है। वहाँ के लोग इन ध्वनियों और प्रकाशों को भगवान शिव की उपस्थिति मानते हैं। महान संत मिलारेपा की एक बहुत ही रहस्यमयी घटना है। उन्होंने कैलाश पर्वत के चारों ओर वर्षों तक ध्यान किया, तपस्या की। एक बार जब वे ध्यानमग्न होकर पर्वत की ओर देख रहे थे, तो उन्होंने देखा कि पर्वत पर एक द्वार खुला है, जहाँ से दिव्य प्रकाश और ध्वनि निकल रही थी। मानो उन्हें किसी और ही लोक के दर्शन हो रहे हों। लेकिन तभी उन्हें एक आंतरिक संदेश मिला - "यह द्वार केवल उन्हीं के लिए है जो तपस्या और त्याग के शिखर पर पहुँच जाते हैं।"
कैलाश से शरीर नहीं, आत्मा लौटी
भारतीय योगियों के साथ भी ऐसी ही घटनाएँ घटी हैं। गोरखनाथ और मछेंद्रनाथ की कथाएँ बताती हैं कि वे कैलाश में प्रवेश कर गए और वर्षों तक वापस नहीं लौटे। जब वे लौटे, तो अपने शरीर के साथ नहीं, बल्कि एक दिव्य ज्योतिर्मय चेतना के साथ लौटे। कई तीर्थयात्रियों ने अपनी कैलाश यात्रा के दौरान अनुभव किया कि उनके बालों और नाखूनों की वृद्धि सामान्य से तेज़ हो गई। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह इस बात का संकेत है कि वहाँ 'समय का फैलाव' हो सकता है। यानी वहाँ समय का प्रवाह पृथ्वी के अन्य भागों से अलग है। ऐसा प्रभाव आमतौर पर केवल ब्लैक होल या अत्यधिक तीव्र गुरुत्वाकर्षण में ही होता है। क्या कैलाश एक ऊर्जा केंद्र है जो समय और स्थान को मोड़ सकता है?
कैलाश पर्वत के अंदर मंदिर
रूसी वैज्ञानिक डॉ. अर्नेस्ट मुलदाशेव ने वर्षों तक कैलाश पर शोध किया। उन्होंने बताया कि कैलाश वास्तव में एक विशाल पिरामिड है - कोई प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक कृत्रिम रचना। उनके अनुसार, यह सबसे प्राचीन सभ्यता द्वारा निर्मित एक ऊर्जा संचारक है। उनकी टीम ने पाया कि कैलाश के आसपास कई अन्य पर्वत समान दूरी पर पिरामिड के आकार के हैं - एक विशाल प्रणाली की तरह। अमेरिकी उपग्रहों से प्राप्त चित्रों में पर्वत के भीतर कुछ खोखले कक्षों के संकेत भी मिले हैं। ये संकेत देते हैं कि अंदर कोई संरचना हो सकती है। कुछ साधकों को ध्यान के माध्यम से कैलाश में अद्भुत अनुभव हुए। किसी ने कहा - "मैंने अपनी आँखें बंद कीं और वहाँ एक दीपक जल रहा था।" किसी ने कहा - "वहाँ एक मंदिर था... जो अदृश्य होते ही अंदर प्रकट हो गया।"
कैलाश का अनसुलझा रहस्य
कैलाश पर ध्यान करने से शरीर में कंपन, ब्रह्म ध्वनि और ऊर्जा का अनुभव होना सामान्य माना जाता है। क्या यही ऊर्जा उस गुप्त द्वार की कुंजी है? कई यात्रियों ने अनुभव किया कि जब वे पर्वत के पास पहुँचे, तो कोई अदृश्य शक्ति उन्हें रोक रही थी। कुछ को रहस्यमय स्वप्न आए, तो कुछ को लगा कि वे किसी दूसरे आयाम में पहुँच गए हैं। ऐसा लगता है कि यह स्थान संरक्षित है - केवल उन लोगों के लिए जो आंतरिक रूप से तैयार हैं। यदि सभी पौराणिक ग्रंथों, तिब्बती परंपराओं, वैज्ञानिक शोधों और साधकों के अनुभवों को मिला दिया जाए - तो यह स्पष्ट हो जाता है कि कैलाश केवल एक पर्वत नहीं, एक द्वार है। यह द्वार भले ही हमारी आँखों को दिखाई न दे, लेकिन चेतना की परतों में सक्रिय है। शिव का परलोक कोई भौतिक स्थान नहीं, बल्कि चेतना की पराकाष्ठा है। क्या कैलाश पर्वत में कोई गुप्त द्वार है जो भगवान शिव के दूसरे लोक की ओर जाता है? इसका उत्तर शायद हमें कभी न मिले, लेकिन इस पर्वत की महिमा और रहस्य हमारी आस्थाओं में सदैव जीवित रहेंगे। कैलाश पर्वत एक ऐसा स्थान है जो हमारे भीतर के दिव्य सत्य को प्रकट करने का प्रतीक बन गया है। कैलाश पर्वत का रहस्य इस धरती पर एक चिरस्थायी उपहार के रूप में बना रहेगा, जो हमें प्रतिदिन अपनी आत्मा की गहराइयों को जानने के लिए प्रेरित करता है।