कैसे हुई श्री गणेशाष्टकम् की उत्पत्ति? इस पौराणिक वीडियो में देखे उस दिव्य स्तोत्र की कथा जो हर संकट से दिलाता है छुटकारा
हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता और संकटमोचक के रूप में पूजा जाता है। वे प्रथम पूज्य देवता हैं और किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत उनके नाम के उच्चारण से ही होती है। गणेश जी के अनेक स्तोत्र, मंत्र और श्लोकों में “श्री गणेशाष्टकम्” एक अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली स्तुति मानी जाती है, जिसे पढ़ने से जीवन के समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं और साधक को बुद्धि, विवेक और समृद्धि की प्राप्ति होती है। पर क्या आप जानते हैं कि इस महान स्तोत्र की उत्पत्ति कैसे हुई?
श्री गणेशाष्टकम् की रचना – एक पौराणिक कथा
श्री गणेशाष्टकम् की उत्पत्ति के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है, जो दर्शाती है कि किस प्रकार यह स्तोत्र एक भक्त की सच्ची श्रद्धा और गणेश जी की कृपा का प्रतीक बन गया। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, जिन्होंने इसे अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर लिखा था।एक समय की बात है, जब आदि शंकराचार्य अनेक स्थानों पर भ्रमण करते हुए धर्म, ज्ञान और शुद्ध भक्ति का प्रचार कर रहे थे। उनके मार्ग में कई ऐसे स्थान आए जहाँ लोगों को अंधविश्वास, दुःख और जीवन की जटिलताओं ने जकड़ रखा था। उन्होंने अनुभव किया कि लोगों की बुद्धि भ्रमित हो गई है और वे आत्मज्ञान से दूर होते जा रहे हैं।इसी क्रम में एक दिन वे एक ऐसे ग्राम पहुंचे जहाँ महामारी और आपदाओं ने लोगों का जीवन कठिन बना दिया था। वहां उन्होंने देखा कि लोग भयभीत हैं और किसी अदृश्य शक्ति से मुक्ति की याचना कर रहे हैं। शंकराचार्य जी ने गणेश जी की उपासना का एक नया रूप देने का निश्चय किया। उन्होंने गहन ध्यान और साधना के बाद “श्री गणेशाष्टकम्” की रचना की – एक ऐसा स्तोत्र जिसमें श्री गणेश जी के आठ रूपों का गुणगान है।
श्री गणेशाष्टकम् का स्वरूप
गणेशाष्टकम्, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, आठ श्लोकों में विभाजित एक स्तोत्र है, जिसमें भगवान गणेश के विभिन्न रूपों, उनके अवतारों, शक्तियों और गुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। प्रत्येक श्लोक न केवल श्रद्धा से ओत-प्रोत है, बल्कि उसमें गूढ़ दर्शन और मंत्रशक्ति का भी समावेश है।इस स्तोत्र में गणेश जी को उनके विविध स्वरूपों – गजानन, लंबोदर, एकदंत, विघ्नराज आदि नामों से संबोधित किया गया है। यह स्तुति मात्र पाठ नहीं बल्कि एक शक्तिशाली प्रयोग है जो साधक को मानसिक, भौतिक और आध्यात्मिक विघ्नों से मुक्त करने की क्षमता रखता है।
हर संकट से मुक्ति का माध्यम
शास्त्रों के अनुसार, श्री गणेशाष्टकम् का नित्य पाठ करने से जीवन में आने वाले सभी संकटों से रक्षा होती है। विशेष रूप से कार्य की शुरुआत, यात्रा, परीक्षा, नौकरी, विवाह, व्यापार या किसी बड़े निर्णय से पहले यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए, तो विघ्न नहीं आते।ऐसा माना गया है कि जिन लोगों के जीवन में बार-बार अड़चनें आती हैं, असफलताएँ मिलती हैं, या बार-बार मेहनत के बावजूद सफलता दूर रहती है – उन्हें श्री गणेशाष्टकम् का पाठ विशेष रूप से करना चाहिए।
आध्यात्मिक दृष्टि से इसका महत्व
गणेशाष्टकम् केवल भौतिक लाभ देने वाला स्तोत्र नहीं है, बल्कि यह आत्मबोध की ओर भी प्रेरित करता है। शंकराचार्य जी ने इसकी रचना केवल किसी फल प्राप्ति हेतु नहीं की, बल्कि यह दिखाने के लिए की कि श्रद्धा, भक्ति और आत्मसमर्पण से कैसे व्यक्ति ईश्वर से एकाकार हो सकता है।इस स्तोत्र का पाठ ध्यानपूर्वक करने से साधक की बुद्धि, मेधा, स्मृति, चिंतन-शक्ति और विवेक में अत्यंत सुधार होता है। यही कारण है कि विद्यार्थी, कलाकार, लेखक और निर्णयात्मक कार्यों से जुड़े लोग इसका नियमित पाठ करते हैं।