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गीता उपदेश: जानिए क्या अर्थ है विनाशाय च दुष्कृताम् श्लोक का

 

देशभर में भगवान कृष्ण का जन्मदिवस मनाया जा रहा हैं इसे जन्माष्टमी भी कहा जाता हैं तो सबसे पहले गीता के उस श्लोक से शुरुआत करते हैं जिसे हम सब हमेशा ही बोलते हैं तो आज हम आपको इस श्लोक के अर्थ के बारे में बताने जा रहे हैं, तो आइए जानते हैं। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥

स्कूल की प्रार्थना से लेकर मंदिरों तक हम सभी यह श्लोक सुनते आ रहे हैं इस श्लोक का अर्थ आज हम आपको बताने जा रहे हैं। मैं जन्म लेता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मैं आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं। आपको बता दें कि गीता के उपदेश आज भी दुनियां के लिए एक महानतम ग्रंथ के रूप में जाना जाता हैं वही जानकारों के मुताबिक दुनिया की हर परेशानी और समस्या का हल गीता में हैं बस समझने की जरूरत होती हैं। मनुष्य का जीवन कैसा हो इस पर भगवान कृष्ण ने क्या कहा है इस श्लोक से जानिए।

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः ।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥

जानिए श्लोक का अर्थ— श्रेष्ठ पुरुष जो जो आचरण करता हैं सम्पर्क में आने वाले पुरुष भी वैसा ही आचरण करते हैं वह जो कुछ प्रमाण कर देता है, समस्त मनुष्य समुदाय उसी के मुताबिक बरतने लग जाता हैं कहने का अर्थ यह हैं कि मनुष्य जेसा आचरण दूसरों से अपेक्ष करते हैं वो ही दूसरों के साथ करना भी पड़ेगा।