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शरद पूर्णिमा के व्रत से चंद्रमा दर्शन तक जाने सबकुछ, वीडियो में देखें पूजा विधि और महत्व 

 

 हर साल ही आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन शरद पूर्णिमा व्रत का पालन किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना और चंद्रदेव की उपासना करने से व्यक्ति के सभी कष्ट और पाप नष्ट हो जाते हैं. व्यक्ति की कुंडली में चल रहा चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है. इस बार शरद पूर्णिमा का व्रत 16 अक्टूबर 2024 को रखा जाएगा. इस दिन व्रत के साथ ही दान पुण्य करने से व्यक्ति को विशेष लाभ प्राप्त होगा. आइए जानते हैं कि चंद्रदेव के दर्शन का समय, पूजा​ विधि से लेकर इसका महत्व...

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वैदिक पंचांग के अनुसार, शरद पूर्णिमा व्रत 16 अक्टूबर 2024 को रखा जाएगा. इसकी शुरुआत 16 अक्टूबर की रात 8 बजकर 40 मिनट से होगी. यह अगले दिन 5 बजकर 5 मिनट तक रहेगी. वहीं चंद्र उदय शाम 5 बजकर 5 मिनट पर होगा. चंद्र देव की उपासना के बाद व्रती व्रत का पारण कर सकते हैं. 

शरद पूर्णिमा पर एक विशेष योग बन रहे हैं. इन विशेष योग में सबसे विशेष रवि योग है, जो सुबह 6 बजकर 24 मिनट से लेकर शाम 7 बजकर 20 मिनट तक रहेगा. इस दौरान सुबह स्नान के भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने के बाद दान करने से भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है. वहीं दान पुण्य के लिए विजय मुहूर्त को सबसे उत्तम माना गया है. यह दोपहर 02 बजकर 05 मिनट से शुरू होकर दोपहर 02 बजकर 45 मिनट तक रहेगा. वहीं संध्या पूजा के लिए शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 50 मिनट से शाम 07 बजकर 10 मिनट के बीच रहेगा. 

शास्त्रों में पूर्णिमा तिथि में शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है. पूर्णिमा तिथि पर ब्रह्म मुहूर्त में स्रनान, ध्यान और दान करने का विशेष लाभ प्राप्त होता है. इससे व्यक्ति के सभी पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं. शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं से पूर्ण रहता है. इस वजह से ही इस दिन का बड़ा महत्व होता है. शरद पूर्णिमा के दिन व्रत का पारण चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही किया जाता है. वहीं चंद्रमा की रोशनी में खीर रखी जाती है. इसमें माना जाता है कि अमृत टपकता है. अगले दिन इसे खाने से शरीर स्वस्थ रहता है. भगवान की कृपा प्राप्त होती है.