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कहीं आप भी तो गलत दिशा में खड़े होकर नहीं करते आरती ? हिन्दू धर्मानुसार जानें सही दिशा और पूजा नियम

 

आरती के दौरान एक छोटी सी गलती भी पूरी पूजा के नतीजे पर असर डाल सकती है। क्या आप जानते हैं कि आरती की थाली किस दिशा में घुमानी चाहिए? लोग अक्सर अनजाने में यह गलती कर देते हैं, लेकिन इसके पीछे गहरे धार्मिक और वैज्ञानिक रहस्य छिपे हैं। आइए, आरती की सही दिशा, उसके नियमों और उसके गहरे महत्व के बारे में जानें, जो आपकी पूजा को सफल बना सकता है।

आरती की दिशा और उसका महत्व: दक्षिणावर्त ही क्यों?
आरती को पूजा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है, जिसमें भक्त भगवान के प्रति अपना सबसे ज़्यादा प्रेम और आभार व्यक्त करते हैं। आरती की थाली किस दिशा में घुमाई जाती है, यह बहुत ज़रूरी है।

ब्रह्मांड की लय: ब्रह्मांड में ऊर्जा का प्रवाह मुख्य रूप से दक्षिणावर्त दिशा में होता है। पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना, ग्रहों की गति, और यहाँ तक कि पानी का घूमना भी इसी दिशा में होता है।

सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र: जब हम आरती की थाली को दक्षिणावर्त घुमाते हैं, तो हम खुद को इस ब्रह्मांडीय लय से जोड़ते हैं। यह क्रिया वातावरण में एक शक्तिशाली सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र बनाती है।

आध्यात्मिक ऊर्जा में वृद्धि: इस गति से उत्पन्न ऊर्जा सीधे भक्तों की ओर आकर्षित होती है, उनकी आध्यात्मिक ऊर्जा को शुद्ध करती है और मन की शांति बढ़ाती है।

धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व
प्रदक्षिणा (परिक्रमा): हिंदू धर्म में, मंदिर या देवता की परिक्रमा हमेशा दक्षिणावर्त दिशा में की जाती है। आरती भी इसी का एक रूप है, जो देवता के सामने खड़े होकर की जाती है। आरती की थाली को दक्षिणावर्त घुमाकर, हम देवता की परिक्रमा का कार्य पूरा करते हैं।

सृष्टि का चक्र: दक्षिणावर्त गति जीवन के चक्र का प्रतिनिधित्व करती है, जन्म से लेकर मोक्ष तक। यह दिखाता है कि हम कैसे भगवान के चारों ओर घूमते हैं और अंत में उनमें विलीन हो जाते हैं।