×

Kalyug की भविष्यवाणियां हो रही सच? जानिए वो 5 लक्षण जो आज हर जगह देखने को मिल रहे

 

सनातन धर्म में 4 युगों का वर्णन किया गया है, जिनमें सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग शामिल हैं। वर्तमान में कलियुग चल रहा है, जिसे पाप, अधर्म, झूठ और माया का युग माना जाता है। श्रीमद्भागवत पुराण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों में कलियुग के कई लक्षण बताए गए हैं। आश्चर्य की बात यह है कि कलियुग के लिए की गई भविष्यवाणियाँ आज के समाज में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हैं। आइए जानते हैं कलियुग के ऐसे पाँच लक्षण जिन्हें आज के समय में महसूस किया जा सकता है।

धर्म की जगह अधर्म का बोलबाला

श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार, कलियुग में धर्म के चार पैरों में से केवल एक धर्म ही बचेगा और वह भी धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगा। आज यह देखा जा सकता है कि झूठ और छल ईमानदारी से ज़्यादा प्रभावी हो गए हैं। लोग अपने फायदे के लिए धर्म को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं।

गुरु-शिष्य के रिश्ते का पतन
कलियुग में गुरु-शिष्य परंपरा का भी धीरे-धीरे पतन होगा। गुरुओं का उद्देश्य ज्ञान देना नहीं, बल्कि धन और यश अर्जित करना होगा। शिष्य भी ज्ञान के बजाय डिग्रियों और नौकरियों के पीछे भागते नज़र आएंगे। आज की शिक्षा व्यवस्था इसका ताज़ा उदाहरण है। धीरे-धीरे समाज में नैतिकता और आत्म-ज्ञान का स्थान भौतिकवाद ने ले लिया है।

धन को सर्वोपरि माना जाएगा
कलियुग में व्यक्ति का पद और प्रतिष्ठा उसके गुणों और आचरण से नहीं, बल्कि उसके धन और बाहरी रूप से निर्धारित होगी, लेकिन आज यही हो रहा है। जिसके पास ज़्यादा धन है, उसकी ही सुनी जाती है। वर्तमान समय में रिश्ते, शिक्षा और यहाँ तक कि न्याय भी कुछ हद तक धन पर निर्भर हो गए हैं।

विवाह और रिश्तों में तनाव
शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में पति-पत्नी का रिश्ता प्रेम और धर्म पर नहीं, बल्कि वासना और सुविधाओं पर निर्भर होगा। वर्तमान समय में रिश्तों में जितनी तेज़ी से नज़दीकियाँ बढ़ेंगी, उतनी ही तेज़ी से रिश्ते टूटेंगे। कलियुग में लिव-इन, तलाक और वासना जैसी चीज़ें आम हो जाएँगी।

माता-पिता का अनादर और वृद्धाश्रमों में वृद्धि
कलियुग का एक प्रमुख लक्षण यह होगा कि बच्चे अपने माता-पिता का सम्मान करना भूल जाएँगे। समाज में वृद्धाश्रमों की संख्या बढ़ती रहेगी। बच्चे अपने माता-पिता से दूर रहना पसंद करेंगे। कलियुग में पारिवारिक मूल्यों का धीरे-धीरे ह्रास होगा। पौराणिक ग्रंथों में कलियुग के लक्षणों के बारे में की गई कल्पनाएँ आज के समाज में भी अनुभव की जा सकती हैं। यह मानव जीवन के लिए एक चेतावनी है कि यदि हम नैतिक मूल्यों का आत्म-मूल्यांकन नहीं करेंगे, तो आध्यात्मिक और पारिवारिक जीवन में तेज़ी से गिरावट आएगी।