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आंवला नवमी विशेष: ब्रह्माजी के आंसुओं से हुई थी आंवले की उत्पत्ति, इस दिन संतान की मंगलकामना के लिए की जाती है पूजा

 

जयपुर।  कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी कहा जाता हैं। आंवला नवमी में आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में कुछ ऐसे त्यौहार मनाएं जाते हैं जो प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका होता है।

ऐसे ही आंवला नवमी में आंवले के पेड़ की पूजा के साथ ही आंवले के पेड़ के नीचे बैठ कर भोजन किया जाता है जिससे रोगों का नाश होता है। शास्त्रों में मान्यता हैं कि आंवला नवमी के दिन महिलाएं संतान प्राप्ति व संतान की दिर्घायु की कामना के लिए आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं। आज इस लेख में आंवला के विषय में कुछ खास बात बता रहें हैं।

जानें कैसे हुई आंवला की उत्पत्ति

ऐसी मान्यता है कि जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी उस समय पृथ्वी पर जिंदगी नहीं थी, उस समय ब्रम्हा जी कमल पुष्प में बैठकर परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे। उस समय ब्रह्माजी कठिन तपस्या में लीन थे। तपस्या के करते-करते ब्रम्हा जी की आंखों से आंसू टपकने लगे। ऐसा माना जाता है कि ब्रम्हा जी के इन्हीं आंसूओं से आंवले के पेड़ की उत्पन्न हुई, इसके करण ही आंवले में चमत्कारी औषधीय गुण आएं।

आंवले का औषधीय महत्व 

आंवले में कई तरह के औषधीय गुण होते हैं जिससे कई रोगो का निवारण होता है। आंवला प्रकृति का दिया ऐसा तोहफा है, जिससे कई सारी बीमारियों का नाश हो सकता है। आंवला में आयरन के साथ ही विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। आंवले का जूस रोजाना पीने से पाचन क्रिया दुरुस्त होती है। त्वचा में चमक आने के साथ  त्वचा के रोगों में मुक्ति मिलती है। आंवले का प्रयोग खाने में करने से बालों की चमक बढ़ती है।