आखिर कब और किसने की शिव रुद्राष्टकम सोत्र की रचना ? वायरल वीडियो में देखे अमर स्तुति की रहस्यमयी कथा और उसका आध्यात्मिक महत्व
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हिंदू धर्म में भगवान शिव को संहारक, योगी और करुणामय ईश्वर के रूप में पूजा जाता है। उनकी स्तुति के लिए अनेकों स्तोत्र, मंत्र और अष्टक रचे गए हैं। इन्हीं में से एक विशेष और अत्यंत प्रभावशाली स्तुति है "शिव रुद्राष्टकम"। यह एक अष्टक है, अर्थात् इसमें आठ श्लोक होते हैं, जो भगवान शिव के गुणों, स्वरूप और उनके असीम तेज का अत्यंत मनोहारी वर्णन करते हैं। लेकिन बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि शिव रुद्राष्टकम की रचना किसने की थी? आइए, इसका ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पक्ष विस्तार से जानते हैं।
तुलसीदास द्वारा रचित अमर स्तुति
शिव रुद्राष्टकम की रचना महान भक्त और कवि गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। तुलसीदास को रामचरितमानस के रचयिता के रूप में सम्पूर्ण भारत में ख्याति प्राप्त है। उन्होंने भक्ति साहित्य को जिस ऊंचाई पर पहुंचाया, वह आज भी अपूर्व है। तुलसीदास ने जहां एक ओर भगवान श्रीराम की भक्ति में अनुपम ग्रंथ लिखे, वहीं भगवान शिव के प्रति भी उनकी अगाध श्रद्धा थी।शिव रुद्राष्टकम की रचना उन्होंने अपनी संस्कृत काव्य रचना 'श्रीरामचरितमानस' के उत्तरकांड में की थी। ऐसा माना जाता है कि जब तुलसीदास काशी (वाराणसी) में निवास कर रहे थे, तब उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में यह अष्टक रचा था। उन्होंने इसे संस्कृत के छंद शैली में लिखा, जो ‘रुद्राष्टक’ कहलाती है, क्योंकि यह शिव के रुद्र रूप की स्तुति है और आठ श्लोकों में विभाजित है।
रचना की पृष्ठभूमि और आध्यात्मिक उद्देश्य
शिव रुद्राष्टकम केवल एक स्तुति मात्र नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव के अनंत, निराकार, अविनाशी और सर्वव्यापी स्वरूप का भव्य चित्रण है। इसके प्रत्येक श्लोक में शिव की महिमा, उनके सौंदर्य, शक्ति, त्याग, करुणा और त्रिपुंडधारी रूप का उल्लेख है।
शिव को ब्रह्मांड का अंतिम सत्य, मृत्यु के भी अधिपति और सभी गुणों से परे बताया गया है। एक जगह तुलसीदास लिखते हैं—"नमामीशमीशान निर्वाणरूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्..."इसका अर्थ है — मैं उन ईश्वर को नमस्कार करता हूँ जो ईशान हैं, जो निर्वाण स्वरूप हैं, व्यापक हैं, वेदस्वरूप ब्रह्म हैं। इस तरह के श्लोकों में शिव को ब्रह्मांड की चेतना का मूल स्रोत माना गया है।
काव्य सौंदर्य और भाषा की विलक्षणता
तुलसीदास ने रुद्राष्टकम को संस्कृत भाषा में रचा, लेकिन इसकी भाषा इतनी सरल और भावपूर्ण है कि यह सहज ही आम जनमानस के हृदय को स्पर्श कर लेती है। इसका पाठ करने से व्यक्ति में भक्ति, श्रद्धा और आत्मिक शांति का संचार होता है।शिव रुद्राष्टकम का पाठ विशेष रूप से सावन मास, महाशिवरात्रि, प्रदोष व्रत और श्रावण सोमवार के दिन किया जाता है। मान्यता है कि इसका नियमित पाठ करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में दुखों का अंत होता है।