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पौधों की नई किस्में विकसित करनी है तो टिशू कल्चर के बारे में जान लीजिए

 

जयपुर। तकनीकी तरक्की को इन दिनों जीवों से जोड़ा जा रहा है। इसी से जैवप्रौद्योगिकी नामक यह नया क्षेत्र उभर कर आया है। इसमें पौधों में आनुवंशिक सुधार के लिए काफी नई तकनीकों की मदद ली जा रही है। इन्हीं में से एक सबसे लोकप्रिय विधि है टिशू कल्चर (Tissue Culture) या ऊतक संवर्धन। जी हां. यही वो तकनीक है जो इन दिनों पौधों को बचाने और उनकी अनोखी किस्में विकसित करने में अपना अहम योगदान दे रही हैं।

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गौरतलब है कि इस विधि में किसी भी पादप ऊतक जैसे जड़, तना, पुष्प आदि को दुर्गम परिस्थितियों में पोषक माध्यम प्रदान किया जाता है। इसी पोषक माध्यम के दम पर यह पौधा मनचाही खूबियां लिए पैदा होता हैं। बता दे कि यह तकनीक पूरी तरह से शक्तता के सिद्धांत पर आधारित हैं। तो अगर आप इस सिद्धांत का नाम ही पहली बार सुन रहे हैं तो हम बता देते हैं कि इस सिद्धांत के अनुसार पौधे की प्रत्येक कोशिका एक पूर्ण पौधे का निर्माण करने की काबिलियत रखती है।

गौरतलब है कि 1902 में हैबरलांट ने कोशिका की पूर्ण शक्तता की अवधारणा दी थी। इसी को यूज करके पौधे के किसी भी टिशू से नया पौधा बनाया जा सकता है। बस इसके लिए एक खास किस्म का माध्यम और पोषक घोल चाहिए होता है। इसी तकनीक की मदद से विलुप्त होते जा रहे पौधों को फिर से उगाया जा सकता है।

Plant tissue culture growing in laboratory bottles on green leaves blurred background for biotechnology and agriculture background.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस तकनीक में पौधे के ऊतकों का एक छोटा सा टुकड़ा लेकर उसे एक जेली में रखा जाता है। इस जेली में खास तौर पर पोषक तत्व और प्लांट हार्मोन मिलाए जाते हैं। इस जेली को आप नए पौधे की जन्मस्थली भी कह सकते हैं। हार्मोन की मदद से पौधे के ऊतकों में तेजी से विभाजन होकर नया पौधा बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।