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परिंदों की चहचहाहट मष्तिस्क की बढ़ाती है क्षमता

 

जयपुर। कुदरत ने इंसान को खूश रखने के लिए कई तरह के चीज़े दी है जिससे की इसको कोई तकलीफ ना हो। इसके लिए एक शब्द है बायोफीलिया अवधारणा इसका मतलब यह है कि, इंसान प्रकृति की गोद में बिताये ताकी उसके सारी दुख दर्द दूर हो जाये। आपको जानकारी दे दे कि यह अवधारणा बीसवी सदी के आसपास विकसित की गई थी और बायोफीलिया की अवधारणा साइकोलॉजिस्ट एरिक फ्रोम ने दी थी। फिर इसके बाद इसे ईकोलॉजिस्ट ईओ विल्सन द्वारा और विकसित किया गया था।

बता दे कि वर्तमान में संगीतकार बिजोर्क ने इससे प्रेरित होकर अपने नये म्यूजिक एलबम का नाम बायोफीलिया रखा है। वैज्ञानिक इस विषय पर लगातार शोध कर रहे हैं कि इंसानी दिमाग पर बायोफीलिया का किस तरह से प्रभाव पड़ता है। आपको जानकारी दे दे कि अब तक हुये अध्ययनों में पाया गया है कि पेड़ पौधों, पहाड़ों और जंगलों का मनुष्य के मस्तिष्क पर असर देखा गया था। और इसी शोध को आगे बढ़ाते हुए ज्ञात किया कि पक्षियों के गाने से भी हमारे दिमाग पर असर पड़ता है। सूरे यूनिवर्सिटी में पर्यावरणीय साइकोलॉजी पर पीएचडी स्कोलर एलीनर रेटक्लिफ ने ये शोध किया है।

इसमें बताया गया है कि पक्षियों के गाने से हमारे दिमाग पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिकों  ने इसके बारे में बचाया कि अभी तक ऐसी तकनीक नहीं बनाई गई है कि  जिससे की जो पक्षियों की आवाज़ से दिमाग पर पड़ने वाले असर को समुचित रूप में रिकॉर्ड करके उसका विश्लेषण कर सके। इसी से जूड़े एक शोध में बताया गया था कि पक्षियों की तेज और अनियमित आवाज़ें, तकनीकों के शोर में दब गई हैं। जिससे इंसान को ये सुनने कम ही मिलती है और यही वज़ह है कि इससे कई शारीरिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।