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दिमाग से नियंत्रित होंगे कृत्रिम अंग, दिव्यांगों के लिए वरदान

 

जयपुर। किसी दुर्घटना में जब भी हमारे शरीर का कोई अंग खो देते है जीवन जीना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। कभी कभी ऐसा होता है कि उस अंग को शरीर से अलग ही कर दिया जाता है तो जीवन कोई भी काम उस अंग से नहीं किया जा सकता है। तब भी दिमाग़ अपना काम करना नहीं छोड़ता है वो धीरे-धीरे हमारा शरीर अपंग हो चुके हिस्से को भुलाकर कार्य को दूसरे हिस्सों से करवाने में विकसित हो जाता है। इसी तरह के  तकनीक के बढ़ते हुये प्रयोग ने विकलांगों को नया जीवन दिया है

जो इस काम को और बेहतर से करने में मदद करेगी। आज की बात करे तो विभिन्न रोबोटिक अंगों के द्वारा विकलांग भी एक बेहतर ज़िंदगी जी रहे है और उनको उससे कोई शिकायत भी नहीं है। इसी तरह से इस दिशा में बेहतर करने के लिए एक नये अध्ययन के अनुसार विकलांग व्यक्ति अब अपनी रोबोटिक आर्म को दिमाग से नियंत्रित कर पायेंगे। ये शोध विकलांग बंदरों के एक ऐसे समूह पर किया गया, जो कई वर्षों पहले अपनी एक भुजा हादसे में खो चुके थे। जब वैज्ञानिकों ने उनके मस्तिष्क के उन हिस्सों का अध्ययन किया गया,

जो कि भुजाओं को नियंत्रित करते हैं, तो उससे ये ज्ञात हुआ कि ये हिस्से एक विशेष न्यूरल प्लास्टिसिटी पर काम करते हैं। यह न्यूरोंस के वातावरण के अनुसार खुद को बदलने की क्षमता रखते है। उससे संबंधित न्यूरोंस शरीर में जीवित रहते हैं। इसके बाद वैज्ञानिकों ने इन बंदरों के विशेष रोबोटिक हाथ लगाये गये, जिनका सीधा कनेक्शन उनके दिमाग से था और इसको सफल बनाने के लिए एक ब्रेन-मशीन इंटरफेस (बीएमआई) को प्रयोग किया गया, जो दिमागी तरंगों को रोबोटिक आर्म तक लाने ले जाने का काम करता है जिससे नियंत्रण मस्तिष्क से संभव हो पायेगा।