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ज्वार से जैव-प्लास्टिक तैयार करने की कवायद जारी

 

हेनरी फोर्ड ने 1940 के दशक में ऑटोमोबाइल से प्लास्टिक बनाने पर प्रयोग शुरू किया और उन्होंने सोयाबीन से प्लास्टिक कार बनाई। उसके बाद जब तेल आधारित वस्तुओं द्रव्यों से भारी पैमाने पर प्लास्टिक का उत्पादन शुरू हुआ तो इसके उपयोग में काफी वृद्धि हुई और यह रोजमर्रा के कार्यो का हिस्सा बन गया। परिणाम यह हुआ कि प्लास्टिक प्रदूषण का अवांछित संकट पैदा हो गया और घट रहे जीवाष्म ईंधन भंडार के प्रति जाग्नकता से वैकल्पिक व टिकाउ वस्तुओं की खोज के दरवाजे खुल गए।

जीवाष्म ईंधन से निर्मित प्लास्टिक के विकल्प के तौर पर टिकाउ वस्तुओं की तलाश जारी रखते हुए इटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी एरिड ट्रॉपिक (आईसीआरआईएसएटी) में भारतीय वैज्ञानिक भविष्य के जैव प्लास्टिक बनाने के लिए ज्वार और सूक्ष्मजीवों के समूहों पर काम कर रहे हैं।

जैव प्लास्टिक यानी बायोप्लास्टिक में आमतौर पर सेल्यूलोज, स्टार्च, ग्लूकोज और वनस्पति तेल का उपयोग होता है।

आईसीआरआईएसएटी के ज्वार प्रजनक वैज्ञानिक अशोक कुमार ने कहा, “हमें काफी परिमाण में कच्चे माल की जरूरत होती है। ज्वार में मक्का और आलू की तरह काफी स्टार्च होता है।”

कुमार ने बताया, “मौजूदा दौर में लोग गóो के अवशेष का उपयोग बायोप्लास्टिक के स्रोत के रूप में कर रहे हैं लेकिन हमने ज्वार से बायोमास आधारित प्लास्टिक बनाया जोकि काफी सस्ता और टिकाउ है।”

न्यूज स्त्रोत आईएएनएस