NASA-ESA मिशन को मिली ऐतिहासिक सफलता, पहली बार कैमरे में कैद हुआ सूरज का दक्षिणी ध्रुव, यहां देखें सबसे तस्वीरें
11 जून 2025 को दुनिया ने सूर्य का वो चेहरा देखा, जो अब तक पूरी तरह छिपा हुआ था। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) और नासा के संयुक्त मिशन सोलर ऑर्बिटर ने पहली बार सूर्य के दक्षिणी ध्रुव की तस्वीरें खींचकर धरती पर वापस भेजी हैं। इन हाई-रिजॉल्यूशन तस्वीरों ने वैज्ञानिकों के सामने सूर्य के बारे में चौंकाने वाले नए राज खोले हैं। अब तक हमने हमेशा धरती से सूर्य को भूमध्य रेखा के स्तर पर ही देखा है। हमारे सभी सोलर मिशन जैसे SOHO या SDO भी इसी एक्लिप्टिक प्लेन में रहते हैं, यानी वह प्लेन जिसमें सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। लेकिन सोलर ऑर्बिटर ने इस सीमा को तोड़ते हुए पहली बार खुद को सूर्य से 17 डिग्री के कोण पर ऊपर उठाया और कैमरे को दक्षिणी ध्रुव की तरफ घुमाया।
23 मार्च 2025 को ली गई इस तस्वीर में सूर्य के दक्षिणी ध्रुव का असली रूप सामने आया है। अल्ट्रावॉयलेट इमेजर (ईयूआई) ने दस लाख डिग्री सेल्सियस के तापमान पर सूर्य के कोरोना (बाहरी वायुमंडल) से निकलने वाली किरणों को कैप्चर करके इसे रिकॉर्ड किया। ईएसए-नासा ने 11 जून 2025 को तस्वीरें जारी कीं।
सूरज की 'अज्ञात भूमि' में चौंकाने वाली गतिविधियाँ पाई गईं
सोलर ऑर्बिटर मिशन के हिस्से के रूप में, वैज्ञानिकों ने पहली बार दक्षिणी ध्रुव पर एक अजीब जगह भी देखी है। यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ उत्तर और दक्षिण चुंबकीय क्षेत्रों का एक यादृच्छिक मोज़ेक मौजूद है। दूसरे शब्दों में, ये वे क्षेत्र हैं जहाँ सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र लगभग हर 11 साल में उलट जाता है। यानी, दक्षिणी ध्रुव चुंबकीय उत्तर बन जाता है और इसके विपरीत। यह वह समय है जब सूर्य अपनी सबसे हिंसक और विस्फोटक गतिविधि पर होता है - सौर ज्वालाओं, सनस्पॉट और कोरोनल मास इजेक्शन की बाढ़। ईएसए के विज्ञान निदेशक, प्रो. कैरोल मैंडेल ने इसे "सूर्य के रहस्यों में मानव जाति की पहली झलक" कहा और कहा कि हम अब सौर विज्ञान के एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं।
क्यों खास है यह मिशन?
1.3 बिलियन डॉलर का यह मिशन 2020 में लॉन्च किया गया था। मार्च 2025 में जब सोलर ऑर्बिटर ने पहली बार खुद को सूर्य की भूमध्य रेखा से 15 डिग्री नीचे झुकाया, तो यह ऐतिहासिक तस्वीर मिली। यह एक तकनीकी चमत्कार है, क्योंकि पृथ्वी से सूर्य के ध्रुवों को देखना असंभव है। अब इस मिशन के तहत वर्ष 2029 तक अंतरिक्ष यान 33 डिग्री तक ऊपर उठ जाएगा, जिससे ध्रुवीय दृश्य और भी बेहतर तरीके से देखे जा सकेंगे।
मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर सोलर सिस्टम रिसर्च के निदेशक प्रो. सामी सोलंकी ने कहा, 'हमें नहीं पता था कि ध्रुवों से हमें क्या देखने को मिलेगा। यह हमारे लिए टेरा इनकॉग्निटा (अज्ञात भूमि) है।' उन्होंने कहा कि सूर्य के इस हिस्से को देखने के बाद यह साबित हो गया है कि कंप्यूटर मॉडल में जिन चुंबकीय क्षेत्रों का उल्लेख किया गया था, वे सच हैं।
सूरज का 'चुंबकीय नृत्य'
सूर्य पृथ्वी की तरह ठोस नहीं है। इसका भूमध्यरेखीय क्षेत्र हर 26 दिन में घूमता है, जबकि ध्रुवीय क्षेत्र हर 33 दिन में घूमता है। इस गति-अंतराल के कारण सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र लगातार हिलता-डुलता रहता है। एक समय ऐसा आता है जब यह इतना अस्थिर हो जाता है कि दक्षिणी ध्रुव उत्तरी ध्रुव बन जाता है और सौर गतिविधि का पूरा पैटर्न बदल जाता है। यूसीएल की प्रो. लूसी ग्रीन, जो 2005 से मिशन से जुड़ी हैं, बताती हैं कि, 'सूर्य की पूरी प्रकृति उसके चुंबकीय क्षेत्र पर निर्भर करती है। शांत से उग्र तक का सफर इसी पर आधारित है।'
अगले पांच से छह सालों में सूर्य अपने अगले सौर न्यूनतम पर पहुंच जाएगा। जहां इसकी गति न्यूनतम होगी और चुंबकीय क्षेत्र सबसे संतुलित होगा। मौजूदा मॉडल सटीक रूप से यह अनुमान नहीं लगा सकते कि यह चक्र कब और कितनी तेजी से बदलेगा, लेकिन सोलर ऑर्बिटर जैसे मिशन इस समझ को बेहतर बनाएंगे।
90 के दशक में भी मौका मिला था, लेकिन…
नासा का यूलिसिस प्रोब (1990) भी सूर्य के ध्रुवों के ऊपर से गुजरा था, लेकिन उसमें कैमरा नहीं था। सोलर ऑर्बिटर पहली अंतरिक्ष प्रयोगशाला है जिसने न केवल चुंबकीय डेटा भेजा बल्कि तस्वीरें भी भेजीं। इतनी स्पष्ट, इतनी विस्तृत कि उन्होंने सूर्य के बारे में हमारा नज़रिया ही बदल दिया।