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इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों में लगने वाली इस छोटी सी चीज के बारे में जान लीजिए

 

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि ट्रांजिस्टर के आविष्कार से पहले इससे मिलती जुलती युक्ति यानी  एफईटी का आविष्कार 1925 में सबसे पहले एक जर्मन भौतिक विज्ञानी ने कर लिया था। मगर उसका पेटेंट प्रपत्र सुबूतों की कमी के चलते खारिज कर दिया गया। इसके कुछ साल बाद ही 1947 में बेल लेब्स में तीन वैज्ञानिकों ने ट्रांजिस्टर का आविष्कार कर लिया था।

गौरतलब है कि दिखने में मामूली सा ट्रांजिस्टर असल में हर एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की जान होता है। इसे आजकल बड़े पैमाने पर हर सर्किट में यूज किया जाता है। यह ट्रांजिस्टर का ही कमाल है कि हम इन दिनों अपने कंप्यूटर और मोबाइल पर इतनी तेज रफ्तार से काम कर पाते हैं। साथ ही किसी भी डिजिटल सर्किट के लिए यह एक महत्वपूर्ण घटक हैं। बिना ट्रांजिस्टर किसी भी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट की कलप्ना करना ही बेकार है।

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बता दे कि इसका सर्वाधिक प्रयोग आवर्धन यानी सिग्नल एम्प्लीफिकेशन के लिए किया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इसकी मदद से इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल की ताकत कई गुना तक बढ़ जाती है। साथ ही यह किसी भी सर्किट को बंद-चालू करने के लिए एक स्विच का रोल भी निभाता हैं। आम तौर पर तीन टांग वाला यह अवयव दो तरह का होता है। पीएनपी और एनपीएन टाइप का। सिलिकॉन और जर्मेनियम सबसे ज्यादा काम में लिए जाते हैं।

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ट्रांजिस्टर को अर्धचालक यानी के सेमीकंडक्टर इलेक्ट्रॉनिक एलीमेंट कहते हैं। क्योंकि सिलीकॉन और जर्मेनियम की वजह से यह अर्धचालक गुणों को प्रदर्शित करता है। तो अगली बार जब कोई ट्रांजिस्टर की बात छेड़े तो उसे तरीके से समझाए कि यह कोई रेडियो या टेप रिकॉर्डर का ब्रांड नहीं, बल्कि एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है जिसके बिना हर परिपथ का जीवन अधूरा है।