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तो इस वजह से शुरु किए गए थे नोबेल पुरस्कार, जानकर रह जाएंगे हैरान

 

जयपुर। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सम्मान या पुरस्कार की अगर बात की जाए तो एक सुर में आवाज़ आएगी नोबेल पुरस्कार। जी हां, मशहूर वैज्ञानिक अल्फ्रेड नोबेल की याद में दिया जाने वाला यह पुरस्कार अपने आप में अकेला ऐसा सम्मान है, जिसके आगे हर सम्मान छोटा ही लगता है। दरअसल अल्फ्रेड नोबेल द्वारा इसे शुरू किए जाने की कहानी भी बहुत ही दिलचस्प है। तो चलिए जान ही लेते है कि आखिर डायनामाइट का आविष्कार करने वाले इस महान वैज्ञानिक ने अपनी सारी संपत्ति इस तरह लोगों में पुरस्कार के तौर पर लुटाने का फैसला क्यों किया था।

बात करे मिस्टर नोबेल की तो उनका जन्म 1833 में स्टॉकहोम शहर में हुआ था। स्वीडन निवासी अल्फ्रेड नोबेल जब बालिग हुए तो उन्हें रसायन विज्ञान की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेज दिया गया। यही पर नोबेल ने 1867 में अपनी विवादित खोज डाइनामाइट को जन्म दिया था। दरअसल नोबेल बचपन से ही बहुत जिज्ञासु प्रवृति के थे। यही वजह थी कि कुल 355 आविष्कार करने के बाद भी उन्हें चैन नहीं था। वह रोज कुछ नया करना चाहते थे। हालांकि डायनामाइट का आविष्कार करके उन्होंन काफी दौलत और शोहरत कमाई थी, मगर साथ ही समाज के एक तबके ने उन्हें इस घातक आवष्कार के लिए तबाही का जनक तक करार दे दिया था।

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जी हां, यही से नोबेल प्राइज की स्टोरी शुरू होती है। दरअसल नोबेल पुरस्कार को शुरू करने का श्रेय एक अखबार को जाता है। इस अखबार में गलती से छपी एक खबर ने नोबेल को मौत का सौदागर करार दे दिया। असल में इस अखबार ने गलती से नोबेल की मौत की खबर छाप दी थी। इस अख़बार ने लिखा था कि अल्फ्रेड ने डाइनामाइट का आविष्कार करके हजारों लोगों को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया है। अपनी मौत की यह झूठी खबर पढ़कर अल्फ्रेड हिल गए। खुद को मौत का सौदागर बताए जाने ने अल्फ्रेड नोबेल को बुरी तरह से तोड़कर रख दिया।

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आखिरकार नोबेल का ने खुद पर लगे इस दाग को मिटाने के लिए अपनी कुल संपत्ति का 94% हिस्सा अर्थात 31,225,000 स्वीडिश क्रोनोर को पांच नोबेल पुरस्कारों के रूप में देने के लिए वसीयत लिखवा दी। बस तब से ही यह नोबेल पुरस्कार का सिलसिला चल पड़ा है। नोबेल की दिली ख्वाहिश थी कि वह इस रकम पर मिलने वाले ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित करे जो इंसानियत के लिए बेहतरीन काम करते हैं।