जयपुर। यह एक प्रकार का भोजन होता है। विज्ञान की भाषा में यह इस प्रकार का भोजन होता है, जो अन्य पौधे और जानवरों के कोशिका द्वारा बनाए गए और्गानिक कौम्पाउंड के हजम होने से बनता है। जानवर, और वो पौधे जो हरे नहीं होते हैं, अपना खाना खुद बनाने में असमर्थ होते हैं, जिसके कारण वो एक दूसरे पर निर्भर हो जाते हैं। परपोषी पोषक मुख्य रूप से जानवर और मानव दोनो ही होते हैं। मानव के साथ ही इसमें कुत्ते, बिल्ली, इंसान, शेर, बाकि आदि शामिल हैं। इसके अलावा कुछ पौधे भी परपोषी होते हैं। उदाहरण के तौर पर, पिचर का पौधा परपोषी होता है। यह कीड़े-मकोड़ों को खाता है। लेकिन ज्यादातर पौधे अपना भोजन स्वयं ही बनाते है इसलिए वो परपोषी न कहलाकर स्वपोषी पौधे कहलाते हैं। परपोषी पोषण तीन प्रकार का होता है — होलोजोइक पोषण —इस पोषण का नाम एक ग्रीक शब्द से लिया गया है, जहाँ होलोज़ का अर्थ है पूरा, और ज़ून का अर्थ है जानवर। यहाँ, खाना मुँह के ज़रिए अंदर जाता है, और इसे हम इंजेशन कहते हैं। सैप्रोफाइटिक पोषण — सैप्रोफाइटिक पोषण का नाम भी एक ग्रीक शब्द से लिया गया है, जहाँ सैप्रो का अर्थ है सड़ा हुआ, और फाइटो का अर्थ है पौधे। इस तरह के पोषण में जीव के सड़े हुए और मरे हुए और्गानिक तत्वों को डीकम्पोज़ किया जाता है।पैरासिटिक पोषण — पैरासिटिक भी एक ग्रीक शब्द से लिया गया है। पैरा का अर्थ है खाना, और साइट का अर्थ है दाने। इस तरह का पोषण एक ऐसा पोषण है जहाँ एक जीव, जिसे पैरासाइट कहते हैं, किसी दुसरे जीव के अंदर या ऊपर बैठ जाता है। इस दूसरे जीव को हम होस्ट कहते हैं। इसका एक उदाहरण है – हुक वर्म।
आइए जानें परपोषी पोषण के बारे में