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एक बाघ की जिंदगी से संवर सकता है पूरा जंगल, जानिए कैसे ?

 

उसे आमतौर पर ‘टाइगर क्वीन’ के नाम से सराहा जाता था और वह विश्व की सबसे मशहूर बाघिन थी। लेकिन मछली को जिस चीज ने खास बनाया वह यह कि उसने इस भ्रम को तोड़ दिया कि बाघ क्रूर होते हैं, जो मनुष्यों को देखते ही उन्हें खत्म कर डालते हैं। उसने यह साबित किया कि वे भी मनुष्यों के दोस्त हो सकते हैं।

इसी के साथ उसने बाघों के संरक्षण का एक बड़ा संदेश दिया। राजस्थान राष्ट्रीय उद्यान की सबसे लंबे समय तक जीवित रही बाघिन मछली के जीवन पर नौ साल अध्ययन कर चुके पुरस्कार विजेता फिल्मकार एस. नल्लामुथु ने आईएएनएस को एक साक्षात्कार में बताया, “मछली की जिंदगी संरक्षण का संदेश देती है। यह बताती है कि अगर आप एक बाघ की रक्षा करते हैं, तो आप एक पूरा जंगल बसा सकते हैं। दुनियाभर में मछली के लाखों प्रशंसकों के लिए वह किसी ताजमहल से कम नहीं थी।”

नल्लामुथु ने इस बाघिन के शुरुआती जीवन से लेकर उसके अंत तक की यात्रा का ब्योरा दर्ज किया है, और इस शानदार बाघिन पर आधारित उनके तीसरे वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग सोमवार को नई दिल्ली में की जाएगी।

इस वृत्तचित्र का उद्देश्य लोगों तक, विशेष तौर पर जंगलों के आसपास मौजूद उन ग्रामीण इलाकों में पहुंचना है, जहां ग्रामीणों को बाघों का शिकार न करने के लिए तथ्यों और आंकड़ों के सहारे नहीं समझाया जा सकता।

फिल्म की डबिंग 37 भाषाओं में की गई है और इसे 147 देशों में प्रदर्शित किया जाएगा।

मछली का निधन 18 अगस्त, 2016 को 20 साल की उम्र में रणथम्बोर में हुआ था। उनके जीन से कम से कम 50 बाघों की उत्पत्ति हो चुकी है, जबकि उसने खुद कम से कम 12 शावकों को जन्म दिया। उसे राजकीय सम्मान से वन में दफनाया गया और जिस स्थान पर उसकी मौत हुई, राजस्थान सरकार उस स्थान पर एक स्मारक बनाने का विचार कर रही है।

नल्लामुथु ने बताया कि जब शिकारियों ने 2004 में सरिस्का के आखिरी बाघ का भी शिकार कर डाला, तो मछली के शावकों की तीसरी पीढ़ी की एक मादा शावक को 2008 में सरिस्का टाइगर रिजर्व में रखा गया। इस समय सरिस्का में 13 बाघ हैं।

नल्लामुथु के वृत्तचित्र का निर्माण नेशनल ज्योग्राफिक चैनल के लिए नेचुरल हिस्ट्री यूनिट इंडिया द्वारा किया गया है और भारत के कई स्थानों के अलावा कई अन्य देशों में इसकी स्क्रीनिंग की जा चुकी है।

नल्लामुथु को उम्मीद है कि उनका यह वृत्तचित्र उत्तर प्रदेश के दुधवा-पीलीभीत क्षेत्र में भी प्रदर्शित किया जाएगा, जहां बहुत से बाघ हैं और जहां मानव और पशु के बीच संघर्ष अपने चरम पर है। इस महीने की शुरुआत में ही पीलीभीत के जंगल के भीतर ग्रामीणों ने एक बाघ को मार डाला था।

उन्होंने कहा, “मुझे हिंदी इलाकों से काफी शानदार प्रतिक्रिया मिली है और मैं चाहता हूं कि इस फिल्म की स्क्रीनिंग पीलीभीत इलाके में भी हो।”

नल्लामुथु के मुताबिक, मछली की जिंदगी ने पशु व्यवहार के बारे में कई बातों का खुलासा किया है, जिसकी मदद से मनुष्य बाघों से जुड़ाव महसूस कर सकता है। साथ ही इससे वनों और पर्यटन उद्योग के लिए काफी राजस्व भी जुटाया जा सकता है। रणथम्बोर भारत का सबसे लोकप्रिय बाघ अभयारण्य है।

नल्लामुथु ने कहा, “वह वन की सफारी जीप के पास बैठ जाती थी, लोगों के साथ-साथ चलती थी। इसने इस भ्रम को दूर करने में मदद की है कि बाघ हमेशा मनुष्यों को मार डालते हैं।”

उन्होंने कहा, “आप उसकी जिंदगी की तुलना किसी मनुष्य के नाटकीय जीवन से कर सकते हैं, जिस प्रकार वह सत्ता हासिल करती है, अपनी मां को अपने इलाके से दूर कर देती है, एक साथी खोजती है, जो बाद में मर जाता है और वह मनुष्यों के समान ही जीवन संघर्ष करती है। एक मौके पर वह एक 14 फुट लंबे मगरमच्छ तक से लड़ती है..ऐसी अनेक बातें हैं।”

मछली की मौत के बारे में नल्लामुथु कहते हैं कि एक प्रकार से वह तकलीफदेह था, लेकिन ‘बाघों की रानी’ मछली की मौत भी उतनी ही गौरवपूर्ण थी, जितनी उसकी जिंदगी।

नल्लामुथु की पहली फिल्म मछली के अपने साथी से बिछड़ने पर और दूसरी फिल्म उसकी मादा शावकों पर आधारित थी। वह एक चौथी फिल्म का भी निर्माण कर रहे हैं, जो कृष्णा नामक बाघ पर आधारित है।

न्यूज स्त्रोत आईएएनएस