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अब चेहरे के बनावटी और झूठे हाव-भाव पकड़ लिए जाएंगे, नहीं दे पाएंगे धोखा

 

किसी के चेहरे पर बनावटी हाव-भाव देखकर लोगों को अक्सर धोखा हो जाता हैं। कुछ शातिर लोग अपने चेहरे पर कई तरह के नक़ाब रखते हैं, लेकिन वो इस कला में इतने माहिर होते है कि कभी पकड़े नहीं जाते हैं। एक ताजा शोध से यह पता चला है कि ज्यादातर भारतीय लोग अपनी असली खुशी को दबा देते हैं। यानी वो चेहरे पर नकली हंसी का नकाब ओढ़कर रखते हैं। कलकत्ता विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिकों ने भारतीय लोगों के चेहरे के वास्तविक एवं बनावटी हाव-भावों की पहचान के लिए यह अध्ययन किया है।

इस अध्ययन में चेहरे के हाव-भाव का विश्लेषण फेशियल एक्शन कोडिंग सिस्टम (एफएसीएस) पद्धति के आधार पर किया गया है। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि एफएसीएस, मनोवैज्ञानिकों पॉल ऐकमान और फ्रिजन द्वारा विकसित मानव चेहरे की अभिव्यक्ति का सटीक विश्लेषण करने वाली अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पद्धति है। इस शोध में 18-25 वर्ष की 20 स्वस्थ व सामान्य युवतियों के चेहरे के भावों का अध्ययन किया गया है। इसमें खुशी और ग़म की असली और नकली अभिव्यक्तियों का आकलन चेहरे की मांसपेशियों की गति के आधार पर किया गया था।

अध्ययन में प्रतिभागियों के गालों के उठाव, भौंहों की भंगिमा, नाक के फूलने-सिकुड़ने, होंठों के खुलने-बंद होने और मुस्कुराहट के समय होठों की खिंचाव रेखा से लेकर आंखों के हाव-भाव के संचालन तक चेहरे की एक एक गतिविधि का विश्लेषण किया गया। इंसान की दोहरी अभिव्यक्ति की प्रवृत्ति के अंतर को समझने का प्रयास मनोवैज्ञानिकों ने कई सिद्धांतों के आधार पर किया। अध्ययन के लिए खींची गईं युवतियों की विभिन्न तस्वीरों और वीडियो शूट के तुलनात्मक अध्ययन से मालूम चलता है कि असल में खुश होने पर व्यक्ति की आंखों के नीचे हल्की-सी सिकुड़न होने लग जाती है। वही नकली हंसी में मुस्कुराते समय आंखों के पास ऐसी कोई भी सिकुड़न दिखाई नहीं देती है।

इसी प्रकार ग़मग़ीन होने पर भौहों, होंठ के कोनों और ठोड़ी की मांसपेशियों में बदलाव से असली मायूसी और उदासी का पता लगाया जा सकता है। इसके साथ ही आंखों से बहते हुए आंसू भी दु:ख का सबूत होते हैं। नकली दु:ख जताने में मांसपेशियों को ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती हैं। उसमें गाल थोड़े उठ जाते हैं, लेकिन होंठ एकदम से बंद हो जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों की माने तो नकली हाव-भाव के दौरान व्यक्ति को अपने असल जज़्बात छुपाने पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में चेहरे की तंत्रिकाओं पर अधिक नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है। इन दोहरी भंगिमाओं के कारण ही अक्सर लोग अपने जीवन में धोखा खा जाते हैं। यह अध्ययन करंट साइंस नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।