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पप्पू यादव की फिसली जुबान और NDA-INDIA गठबंधन को लेकर मंच से दे बैठे उल्टा बयान, वायरल क्लिप में देखे क्यों गरमाई सियासत ?

 

बिहार की राजनीति में अपने बेबाक अंदाज़ और जनहितैषी मुद्दों के लिए मशहूर जन अधिकार पार्टी (JAP) के नेता पप्पू यादव एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार वजह है उनकी एक जुबानी भूल, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। एक जनसभा के दौरान जब पप्पू यादव एनडीए और विपक्षी गठबंधन भारत (INDIA) के बारे में बात कर रहे थे, तो वे गलती से दोनों गठबंधनों को एक समझ बैठे।

<a style="border: 0px; overflow: hidden" href=https://youtube.com/embed/t1mU3tI51Xw?autoplay=1&mute=1><img src=https://img.youtube.com/vi/t1mU3tI51Xw/hqdefault.jpg alt=""><span><div class="youtube_play"></div></span></a>" title="पप्पू यादव की ज़ुबान फिसली! NDA-INDIA में कर बैठे गड़बड़ | Bihar Politics Viral Video" width="1250">

दरअसल, पप्पू यादव मंच से लोगों को संबोधित कर रहे थे और राजनीतिक समीकरणों पर बात करते हुए वे कहना चाहते थे कि जनता एनडीए की नीतियों से सावधान रहे और भारत गठबंधन को मज़बूत करे। लेकिन अचानक उन्होंने उल्टा बयान दे दिया - "हमें एनडीए को साथ देना है, भारत को हराना है।" इसके तुरंत बाद मंच पर मौजूद उनके साथियों ने उन्हें टोका और उन्होंने अपनी बात सुधारते हुए कहा, "मेरा मतलब था कि एनडीए को हराना है, भारत को जीतना है।"

विपक्ष ने जहाँ इस जुबान फिसलने का मज़ाक उड़ाने का मौका नहीं छोड़ा, वहीं यह क्लिप सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गई। कई यूज़र्स ने इसे 'राजनीतिक भूल' करार दिया और कहा कि नेताओं को जनता के सामने बोलते समय, खासकर जब चुनावी माहौल नज़दीक हो, अपने शब्दों पर ध्यान देना चाहिए।

हालाँकि, पप्पू यादव ने इस पर सफाई देते हुए कहा, "यह एक मानवीय भूल थी। मेरा राजनीतिक रुख़ बिल्कुल साफ़ है - मैं हमेशा से फ़ासीवादी ताक़तों के ख़िलाफ़ रहा हूँ और INDIA गठबंधन के साथ हूँ। मेरी पार्टी जनता के कल्याण के लिए काम कर रही है और करती रहेगी।"

हालाँकि, यह घटना यह भी दर्शाती है कि कैसे एक छोटा सा बयान या भूल, ख़ासकर जब चुनावी सरगर्मी शुरू हो गई हो, कितना बड़ा राजनीतिक असर डाल सकती है। पप्पू यादव के समर्थक भले ही इस जुबान फिसलने को सामान्य मानें, लेकिन विरोधी इसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।अब देखना यह है कि इस भूल का क्या राजनीतिक असर पड़ता है और क्या पप्पू यादव की पार्टी इससे किसी तरह निपट पाती है या नहीं। इसे बिहार की राजनीति में एक हल्के लेकिन दिलचस्प मोड़ के तौर पर देखा जा रहा है।