लीक हुई 'टूलकिट' से मचा बवाल! पप्पू यादव और रवीश कुमार ने बताया बांग्लादेशी षड्यंत्र, दोनों ने किया चुनाव बहिष्कार का एलान
पप्पू के आगे दो पप्पू, पप्पू के पीछे दो पप्पू। बताओ कितने पप्पू? पप्पू-पप्पू-पप्पू... जहाँ देखो, पप्पू ही पप्पू है। पप्पू लखनऊ कोर्ट में सरेंडर कर रहा है। पप्पू चुनाव आयोग को गाली दे रहा है। पप्पू को पप्पू के मंच से भगाया जा रहा है। फिर भी पप्पू अपने बेटे का करियर बनाने के लिए पप्पू की तारीफ़ कर रहा है।पूर्णिया से निर्दलीय सांसद और कांग्रेस नेता पप्पू यादव विपक्ष से बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करने की अपील कर रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव का कांग्रेस ने ही बहिष्कार कर दिया था, जिसके चलते उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा। अभी कुछ दिन पहले ही हमें यह नजारा फिर देखने को मिला जब बिहार में महागठबंधन के विरोध में कांग्रेस ने पप्पू यादव का बहिष्कार किया। उन्हें मंच पर चढ़ने भी नहीं दिया गया, राहुल गांधी के सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें धक्का देकर भगा दिया।
पप्पू यादव से लेकर रवीश कुमार तक, चुनाव बहिष्कार का 'टूलकिट'
लगता है पप्पू यादव के 'पिछवाड़े' पर लगी चोट का असर उनके मन पर भी कुछ-न-कुछ हुआ है, इसीलिए उन्हें हर तरफ बहिष्कार-बहिष्कार ही दिखाई दे रहा है। पप्पू यादव बोल तो रहे हैं, लेकिन यह भाषा अराजकता को जन्म देने वाले टूलकिट जैसी ही है। अराजक तत्व उस अराजकता से सत्ता हथियाने में कामयाब हो जाते हैं। जब वे चुनावों में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को हराने में कामयाब नहीं होते, तो यह तरीका अपनाया जाता है।
रवीश कुमार भी कहते हैं - "हम चुनाव क्यों करवा रहे हैं, प्रिंट कमांड दो और नतीजे छाप दो।" नेताओं और अपना एजेंडा चलाने वाले यूट्यूबर्स की भाषा भी ऐसी ही लगती है, यह महज संयोग नहीं हो सकता। ये पर्दे के पीछे चल रही साजिश को अंजाम देने के लिए नियुक्त मोहरे हैं।
बात कुछ यूँ है कि बिहार में मतदाता सूची में सुधार का अभियान चल रहा है। यह काम भाजपा या जदयू नहीं, बल्कि चुनाव आयोग कर रहा है। एक लाख बीएलओ घर-घर जाकर मतदाता सूची को अपडेट कर रहे हैं। खास बात यह है कि राजनीतिक दलों द्वारा नियुक्त डेढ़ लाख बीएलए इस काम में उनकी मदद कर रहे हैं। ज़ाहिर है, इनमें विपक्षी दलों के एजेंट भी शामिल हैं। क्या पप्पू यादव यह कहना चाह रहे हैं कि कांग्रेस द्वारा नियुक्त बूथ लेवल एजेंट अपना काम ठीक से नहीं कर रहे हैं? जब कांग्रेस पार्टी खुद इस प्रक्रिया में शामिल है, तब भी अगर उसे कोई खामियाँ मिलती हैं, तो दोष भी कांग्रेस पर ही आना चाहिए, है ना?
वे बांग्लादेश के 'अराजक' मॉडल को भारत में लागू करना चाहते हैं। चुनाव बहिष्कार का टूलकिट उनका आजमाया हुआ तरीका है। पिछले साल खालिदा ज़िया की पार्टी बीएनपी ने बांग्लादेश में आम चुनावों का बहिष्कार किया था। इस टूलकिट के बाद, विदेशी ताकतों की मदद से चुनाव विरोधी माहौल बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश में यूरोपीय संघ के राजदूत चार्ल्स व्हाइटली ने एक पत्र लिखकर चुनावों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था। इसी तरह, जनवरी 2019 में, सैयद शुजा नाम के एक व्यक्ति ने लंदन में कथित ईवीएम हैकिंग का लाइव डेमो दिया था। ये एक ऐसा डेमो था कि वामपंथी मीडिया पोर्टल्स को भी कहना पड़ा- ये गलत कैसे हो सकता है भाई?
पप्पू यादव भी यही भाषा बोल रहे हैं। वो कह रहे हैं कि दुनिया को पता चलना चाहिए कि भारत कितना लोकतांत्रिक है। विडंबना देखिए, ये सब एक ऐसे नेता कह रहे हैं जो खुद 2 प्रतिशत से भी कम वोटों के अंतर से जीतकर लोकसभा पहुँचा है। ये खेल अभी शुरू भी नहीं हुआ है। पिछले साल जब महायुति गठबंधन ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जीता था, तब भी ऐसी ही साज़िश रची गई थी। उसी महाराष्ट्र में, जब एमवीए ने लोकसभा चुनाव जीता था, तब ईवीएम और चुनाव में गड़बड़ी पर चर्चा बंद हो गई थी। एक निलंबित पुलिस अधिकारी के बयान के सहारे साज़िश रचने की कोशिश की गई। महाराष्ट्र चुनाव पर चर्चा अभी भी जारी है, अभी पिछले महीने ही राहुल गांधी ने एक दर्जन अख़बारों में लेख लिखकर महाराष्ट्र में कथित मैच फिक्सिंग का रोना रोया था।
महाराष्ट्र में ये योजना काम नहीं आई, महाराष्ट्र चुनाव की साज़िश को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश भी काम नहीं आई - तो अब बिहार के सहारे इस कल्पना को साकार करने की कोशिश हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि चुनाव आयोग को यह तय करने का अधिकार है कि जो लोग भारत के नागरिक नहीं हैं, उनका नाम वोटर लिस्ट में न हो। बिहार में 2003 में भी SIR यानी विशेष गहन पुनरीक्षण किया गया था। देश में नब्बे के दशक में भी तीन बार ऐसा हो चुका है, तो फिर अब ही हंगामा क्यों? 1957 और 1961 में जब SIR हुआ था, तब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे। अगर नेहरू के समय ऐसा हुआ था, तो मोदी के समय में यह गलत कैसे हो सकता है?