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जाति जनगणना पर कांग्रेस की जल्दबाजी! क्या कर्नाटक में सामाजिक न्याय या सियासी एजेंडा?

 

पिछले कुछ वर्षों में जाति जनगणना का मुद्दा जिस तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उठाया है वह अपने आप में एक मिसाल रहा है. देश-विदेश का कोई मंच ऐसा नहीं होगा जहां उन्होंने जाति जनगणना की बात नहीं की होगी. कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने ही 2014-15 में जाति जनगणना करवाई थी उसे लागू करने के बजाय अब कर्नाटक सरकार फिर से जाति जनगणना करवाने जा रही है. 10 साल पहले इसका खर्च करीब 165 करोड़ रुपये आया था.जाहिर है अब 300 करोड़ से ऊपर ही खर्च होना तय है. यह जानते हुए भी केंद्र सरकार जाति जनगणना करवाने जा रही है , एक बार फिर कर्नाटक में जाति जनगणना करवाने का मकसद क्या हो सकता है? जाहिर है सवाल तो उठेंगे ही.

दरअसल कर्नाटक में हुई जाति जनगणना की विश्वसनीयता पर राज्य की दो प्रभावशाली जातियों लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों ने सवाल उठा दिया. इसे अवैज्ञानिक बताते हुए इन समुदायों ने कहा कि उनकी जातियों की हिस्सेदारी को कम बताया गया है . इन समुदायों के नेताओं ने आरोप लगाया कि सीएम सिद्धारमैया की कुरुबा जाति सहित अन्य OBC समुदायों की आबादी को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया गया है. यही कारण रहा कि 2025 में कांग्रेस सरकार ने यह कहते हुए कि इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया कि यह एक दशक पुरानी और अविश्वसनीय है. पर असली मसला कुछ और था.

 इस विवाद ने कर्नाटक कांग्रेस के तीन ताकतवर गुटों को तीन ध्रुव बना दिया.  खासकर सिद्धारमैया और मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच तनाव कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. भाजपा ने भी इस नए सर्वे को धन की बर्बादी करार दिया है. भाजपा सांसद लहर सिंह सिरोया ने सुझाव दिया कि राज्य को केंद्र सरकार की आगामी राष्ट्रीय जनगणना का इंतजार करना चाहिए, जिसमें जाति गणना भी शामिल होगी, ताकि डेटा में विरोधाभास से बचा जा सके.केंद्र की जनगणना 1931 के बाद पहली बार व्यापक जाति आधारित डेटा एकत्र करेगी, और इसके आंकड़े 2026 तक उपलब्ध हो सकते हैं. जाहिर है कि कर्नाटक सरकार की जाति सर्वे के लिए जल्दबाजी पर सवाल उठेंगे ही. दरअसल देश में जहां भी जाति सर्वे हो रहे हैं सभी एक तरह से पिछड़ी जातियों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के लिए सरकारें कर रही हैं. कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के जाति सर्वे के मूल में भी यही उद्दैश्य है.

कर्नाटक में कांग्रेस सरकार, विशेषकर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया, अपनी AHINDA (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, दलित) रणनीति को मजबूत करना चाहते हैं. 2014-15 के पिछले सर्वे, जिसे 2025 में खारिज किया गया, ने लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों की आबादी को कम दिखाने के आरोपों के कारण विवाद खड़ा हो गया. इसने कांग्रेस के भीतर, खासकर सिद्धारमैया और मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच, तनाव पैदा किया. नया सर्वे कांग्रेस हाईकमान, जिसमें राहुल गांधी और खड़गे शामिल हैं, के दबाव में शुरू किया गया है, ताकि OBC और दलित समुदायों के लिए नीतिगत लाभ सुनिश्चित किए जा सकें. इसका फायदा यह होगा कि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को जातिगत समीकरणों को साधने का एक टूल मिल जाएगा.

कर्नाटक में 2014-15 के जाति आधारित सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण को लेकर कांग्रेस पार्टी की टॉप लीडरशिप के बीच द्वंद्व की स्थिति पैदा हो गई.मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच तनाव तो उजागर हुआ ही डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की.शुरू में सिद्धारमैया चाहते थे कि इस सर्वे को लागू किया जाए क्योंकि यह उनकी महत्वाकांक्षी रणनीति AHINDA (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, दलित) को मजबूत करता था. लेकिन लिंगायत और वोक्कालिगा नेताओं, विशेषकर उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार (वोक्कालिगा) के दबाव और पार्टी के भीतर असंतोष के कारण यह रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली गई. मल्लिकार्जुन खड़गे, जो दलित समुदाय से आते हैं, ने इस सर्वे को लागू करने पर जोर दिया, क्योंकि यह अनुसूचित जातियों (SC) और OBC के लिए नीतिगत लाभ सुनिश्चित कर सकता था.

खड़गे ने 2013 में सिद्धारमैया पर सर्वे की रिपोर्ट दबाने का आरोप लगाया, जिसमें डीके शिवकुमार की भूमिका का भी जिक्र था. इस साल राहुल गांधी और खड़गे ने सिद्धारमैया पर नया सर्वे कराने का दबाव बनाया. सिद्धारमैया न चाहते हुए भी हाईकमान के फैसले को टाल नहीं सके. क्योंकि वे न तो हाईकमान का खुलकर विरोध कर सकते थे और न ही लिंगायत-वोक्कालिगा समुदायों की नाराजगी मोल लेना चाहते थे. इस विवाद ने कर्नाटक कांग्रेस में सत्ता के समीकरणों को जटिल बना दिया. सिद्धारमैया की कुरुबा और AHINDA आधारित रणनीति को खड़गे के दलित समर्थन और शिवकुमार के वोक्कालिगा प्रभाव से चुनौती मिली. जाहिर है कि नया सर्वे कर्नाटक में कांग्रेस को बचाने का प्रयास है.