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महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा धमाका! बंद कमरे में फडणवीस-उद्धव की 20 मिनट की गुप्त मुलाकात उठे कई सवाल

 

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बीच बंद कमरे में बैठक हुई है। यह बैठक विधान परिषद के सभापति राम शिंदे के कक्ष में हुई। दोनों नेताओं के अलावा कमरे में कोई और मौजूद नहीं था। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री फडणवीस और उद्धव ठाकरे के बीच करीब 10 मिनट तक बंद कमरे में चर्चा हुई। हालांकि, इस बैठक में क्या चर्चा हुई, इसकी जानकारी अभी सामने नहीं आई है।बंद कमरे में हुई बैठक से पहले, उद्धव ठाकरे ने अपने विधायक बेटे आदित्य ठाकरे के साथ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और विधान परिषद के सभापति राम शिंदे से मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान, उद्धव ठाकरे ने मराठी भाषा और हिंदी की अनिवार्यता के संदर्भ में विभिन्न संपादकों द्वारा लिखे गए संपादकीय और स्तंभों के संकलन की एक पुस्तक मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और राम शिंदे को भेंट की।

बताया जा रहा है कि उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस के बीच विधानसभा में विपक्ष के नेता पद, त्रिभाषा फॉर्मूले और हिंदी की अनिवार्यता को लेकर चर्चा हुई। हिंदी क्यों अनिवार्य है? यह पुस्तक उद्धव ठाकरे ने देवेंद्र फडणवीस को दी। देवेंद्र फडणवीस ने उद्धव ठाकरे से यह पुस्तक समिति के अध्यक्ष नरेंद्र जाधव को भी देने का अनुरोध किया।विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद अध्यक्ष का अधिकार है, लेकिन विपक्ष के नेता का पद अभी तक नहीं दिया जा रहा है। इस संबंध में उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ने मुख्यमंत्री के साथ सदन में चर्चा की। इस अवसर पर ठाकरे की शिवसेना के कुछ विधायक भी मौजूद थे।

फडणवीस ने कल उद्धव को यह प्रस्ताव दिया था।

इससे पहले बुधवार को फडणवीस ने कहा था कि उद्धव ठाकरे "एक अलग तरीके से सत्ता में आ सकते हैं।" महाराष्ट्र विधानसभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि 2029 तक भाजपा के विपक्ष में आने की कोई गुंजाइश नहीं है। फडणवीस ने कहा, "कम से कम 2029 तक तो हमारे वहाँ (विपक्ष) आने की कोई गुंजाइश नहीं है। उद्धव जी इस तरफ (सत्तारूढ़ दल) आने की संभावना पर विचार कर सकते हैं और उस पर अलग तरीके से विचार किया जा सकता है, लेकिन हमारे वहाँ (विपक्ष) आने की कोई गुंजाइश नहीं बची है।आपको बता दें कि शिवसेना और भाजपा का गठबंधन 2019 तक था, लेकिन चुनाव जीतने के बाद दोनों दलों के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर मतभेद हो गए और दोनों दलों का गठबंधन टूट गया। उद्धव ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस से हाथ मिलाकर सरकार बना ली।