कन्यादान में सोने की जगह रिवॉल्वर या तलवार, बागपत पंचायत ने बेटी की सुरक्षा के लिए जारी किया अनोखा फरमान
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के एक गाँव में दहेज के लिए निक्की नाम की एक महिला की हत्या कर दी गई। महिलाओं के खिलाफ हिंसा, क्रूरता और जघन्य अपराध की कई ऐसी घटनाएँ हैं जिनके बारे में सुनकर ही रूह काँप जाती है। महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार की इन घटनाओं के बीच, ज़्यादातर परिवार अपनी बेटियों को लेकर ज़्यादा चिंतित हो गए हैं। गौरीपुर मीतली गाँव में हुई एक महापंचायत में बेटियों की सुरक्षा को लेकर डर भी देखने को मिला।
बेटी के कन्यादान में रिवॉल्वर और पिस्तौल दी जाए...
जहाँ महापंचायत में बेटियों की सुरक्षा को लेकर एक अनोखा फरमान सुनाया गया। ठाकुर समाज की केसरिया महापंचायत में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष ठाकुर कुंवर अजय प्रताप सिंह ने मंच से ऐलान किया कि हम बेटियों को दहेज और कन्यादान में जो सोना, चाँदी और पैसा देते हैं, वो दें या न दें, लेकिन एक खंजर या तलवार और रिवॉल्वर ज़रूर दें। अगर किसी को रिवॉल्वर महंगी लगती है, तो वो पिस्तौल दे दें। बागपत के गौरीपुर मीतली गाँव में ठाकुर समाज की एक महापंचायत हुई। जिसे केसरिया महापंचायत नाम दिया गया।
पंचायत में ठाकुर समाज के लोगों ने भाग लिया
इस पंचायत में ठाकुर समाज के लोगों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। इस दौरान अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष ठाकुर कुंवर अजय प्रताप सिंह ने मंच से बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि हम पुरानी परंपरा को भूल रहे हैं। आज जब हम बेटी का कन्यादान करते हैं, तो उसे सोना, चांदी और पैसे देते हैं। लेकिन अगर वह इसे पहनकर बाजार जाती है, तो उसे लूट लिया जाता है। ताकि कोई चोर या ठग उसे परेशान न कर सके, बेटी को पैसे, सोना-चांदी दें या न दें, लेकिन उसे खंजर और तलवार ज़रूर दें। वर्तमान में ऐसी ही स्थिति है और अगर बेटी हमारी है, तो उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी हमारी है।
निक्की हत्याकांड से लोग डरे हुए हैं
निक्की की हत्या ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया है। ससुराल वालों पर दहेज की मांग पूरी न होने पर उसे ज़िंदा जलाने का आरोप है। ऐसे में बागपत की पंचायत का यह फरमान ऐसे समय में आया है जब देश भर में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को लेकर बेहद गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पंचायत का यह संदेश भले ही प्रतीकात्मक हो, लेकिन यह उस सामाजिक सरोकार को दर्शाता है जो निक्की जैसी घटनाओं के बाद और भी गहराई से महसूस किया जा रहा है। सवाल यह भी उठता है कि क्या हथियार देना ही सुरक्षा का एकमात्र उपाय है? क्या इससे महिलाओं पर और ज़्यादा हिंसा का ख़तरा नहीं बढ़ सकता?