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जानिए कब होते है संतान प्राप्ति के योग

 

हर मनुष्य के जीवन में ज्योतिषशास्त्र ग्रह कुंडली और नक्षत्र विशेष महत्व रखते हैं वही हर विवाहित स्त्री और पुरुष अपने जीवन में संतान प्राप्ति की कामना करता हैं वे अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए ऐसा करते हैं वंश की वृद्धि के लिए खुद परमात्मा की रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी होता हैं जहां एक विवाहित पुरुष पिता बनकर अपने आपको पूर्ण महसूस करता हैं तो वही एक विवाहित स्त्री स्वयं मां बनकर खुद को पूर्ण रूप में देखती हैं। वही धार्मिक शास्त्रों में भी यही कहा जाता हैं कि संतान हीन मनुष्य के यज्ञ, दान, तप और अन्य सभी पुण्य निष्फल हो जाते हैं वैदिक ज्योतिष में किसी भी घटना के लिए सबसे पहले कुंडली के योगों को देखा जाता हैं फिर उस विषय से संबंधित दशा अतंर्दशा का विश्लेषण किया जाता हैं अंत में गोचर में ग्रहों को देखा जाता हैं कि वहकब हरी झंडी दिखाएंगे।

वही कुंउली में पंचमेश सूर्य पंचम भाव में होता हैं या पंचम भाव को देखता हो तो इस स्थिति में एक पुत्र होता हैं जबकि वही इसी क्रम में गुरु पांच, मंगल तीन पुत्र प्रदान करता हैं शनि सात कन्या, शुक्र छह कन्या और चंद्रमा एक कन्या देता हैं पंचम भाव और पंचमेश से संबधं रखने वाले ग्रहों के विभिन्न अनुपात को देखकर संख्या का निर्णय किया जा सकता हैं।

वही पंचम भाव, पंचमेश और गुरु पाप ग्रह से दृष्ट हों, या यूं कहें कि पाप ग्रहों की दृष्ट इनके ऊपर हो तो देवता के शाप से वह मनुष्य संतान हीन होता हैं अगर ये षष्ठेश से युत या द्रष्ट हों, तो संतानहीन हो जाता हैं।

हर विवाहित स्त्री और पुरुष अपने जीवन में संतान प्राप्ति की कामना करता हैं वे अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए ऐसा करते हैं वंश की वृद्धि के लिए खुद परमात्मा की रचना में सहयोग देने के लिए यह आवश्यक भी होता हैं जहां एक विवाहित पुरुष पिता बनकर अपने आपको पूर्ण महसूस करता हैं तो वही एक विवाहित स्त्री स्वयं मां बनकर खुद को पूर्ण रूप में देखती हैं। जानिए कब होते है संतान प्राप्ति के योग