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ज्ञानियों के ज्ञानी महर्षि याज्ञवल्क्य के बारे में जानिए सब कुछ

 

प्राचीन ऋषियों में महर्षि याज्ञवल्क्य का जन्म फाल्गुन कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मिथिला नगरी के निवासी ब्रह्मरथ और सुनंदा के घर हुआ था। श्रीमद्भागवत के मुताबिक, इनका जन्म देवराज के पुत्र के रूप में हुआ था। वही सात वर्षों में याज्ञवल्क्य ने अपने मामा वैशंपायन से शिक्षा ग्रहण कर वेद की सभी ऋचाएं कंठस्थ कर ली थी। बाद में इन्होंने उद्धालक आरुणिक ऋषि से अध्यात्म तो ऋषि हिरण्यनाम से योगशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। आगे की शिक्षा के लिए वे वर्धमान नगरी के गुरु शाकल्य के आश्रम में ऋग्वेद का विशेष अध्ययन करने के लिए गए। मगर वहां के राज सुप्रिय की अधार्मिक व​ विलासी प्रवृत्ति और गुरु शाकल्य का उनके प्रति पूज्य भाव देख वे अपने गुरु से विमुख हो गए और आश्रम छोड़ दिया। फिर राजा जनक का शिष्य बन आगे की विद्या ग्रहण की।

आपको बता दें कि युवावस्था में महर्षि याज्ञवल्क्य का विवाह कात्यायनी से हुआ था और एक पुत्र भी कात्यायन से हुआ। इधर राजा जनक के यहां एक ऋषि मित्र की कन्या मैत्रेयी ने भी मन ही म यास्वल्क्य को पति मान लिया। जब ऋषि अपनी पुत्री के लिए वर खोजने निकले, तब मैत्रेयी ने कहा कि मैने मन ही मन याज्ञवल्क्य को पति रूप में स्वीकार कर लिया हैं तब पिता ने पुत्री से कहा कि वे तो विवाहित हैं और एक पुत्र के पिता भी हैं। यह संभव नहीं हैं इस पर मैत्रेयी ने उत्तर देते हुए कहा कि वे कात्यायनी को बड़ी बहन व पुत्र कात्यायन को सगे पुत्र जैसा ही प्यार देंगी। फिर कात्यायनी की ही इच्छा से याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी का विवाह संपन्न हुआ।

प्राचीन ऋषियों में महर्षि याज्ञवल्क्य का जन्म फाल्गुन कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मिथिला नगरी के निवासी ब्रह्मरथ और सुनंदा के घर हुआ था। श्रीमद्भागवत के मुताबिक, इनका जन्म देवराज के पुत्र के रूप में हुआ था। सात वर्षों में याज्ञवल्क्य ने अपने मामा वैशंपायन से शिक्षा ग्रहण कर वेद की सभी ऋचाएं कंठस्थ कर ली थी। ज्ञानियों के ज्ञानी महर्षि याज्ञवल्क्य के बारे में जानिए सब कुछ