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जानिए कर्मों के देवता शनि की जन्म कथा, कैसे बनें ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ

 

हिंदू धर्म में शनिदेव को न्याय और कर्मों का देवता माना गया हैं वही नौ ग्रहों के समूह में इन्हें सबसे क्रूर माना जाता हैं मगर ऐसा नहीं हैं कि भगवान सूर्य और उनकी पत्नी छाया की संतान शनिदेव जी अगर किसी पर मेहरबान हो तो वो इसे धन धान्य से परिपूर्ण कर देते हैं वही ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शनि देव एक ही राशि में करीब 30 दिन तक रहते हैं ये कमर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं शिव ने शनि महाराज को नवग्रहों में न्यायधीश का काम सौंपा हैं शनिदेव की वैसे तो कई सारी कथाएं हैं मगर आज हम आपको शनि महाराज के जन्म की पूरी कथा बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं। शास्त्रों के मुताबिक कश्यप मुनि के वंशज भगवान सूर्य देव की पत्नी छाया ने संतान के लिए शंकर जी की कठोर तपस्या की। इसके फल में ज्येष्ठ महीने की अमावस्य को शनि ने जन्म लिया। गर्मी व धूप के कारण शनि का वर्ण काला हो गया था। मगर अपनी माता की कठोर तपस्या के चलते शनि में अपार शक्तियां का समावेश था। एक बार शनि के पिता अपनी पत्नी से मिलने आए। उन्हें देखकर शनि ने अपनी आंखें बंद कर ली। सूर्य देव में इतना तेज था कि शनि डन्हें देख नहीं पाए। सूर्य देव ने अपने पुत्र के वर्ण को देखा और अपनी छाया पर संदेह व्यक्त किया उन्होंने कहा कि यह बालक उनका नहीं हो सकता है।

वही इसके चलते शनिदेव के मन में अपने पिता के लि शत्रुवत भाव आ गए। जब से शनि का जन्म हुआ तब से लेकर उनके पिता ने कभी भी उनके लिए पुत्र प्रेम व्यक्त नहीं किया। ऐसे में शनिदेव ने शिव की कड़ी तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया। शिव ने प्रसन्न होकर शनि से वरदान मांगने को कहा। तब शनि ने शिव से कहा कि उसके पतिा सूर्य उसकी माता को प्रताड़ित और अनादर करते हैं इससे उनकी माता हमेशा अपमानित होती हैं ऐसे में शनि ने शिव से सूर्य से अधिक ताकतवर और पूज्य होने का वरदान मांगा। शिव जी ने शनि को वरदान दिया कि वो नौ ग्रहों में श्रेष्ठ स्थान पाएंगे। साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश व दंडाधि​कारी भी होंगे। आपको बता दे कि केवल मनुष्य ही नहीं देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग भी उनसे भयभीत होंगे।