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Pradosh vrat 2021: क्षय रोग से मुक्ति के लिए चंद्रदेव ने किया था पहला प्रदोष व्रत, जानिए इससे जुड़ी कथा

 

हिंदू धर्म में व्रत त्योहार को विशेष माना जाता हैं वही प्रदोष व्रत भी हर मास में दो बार पड़ता हैं ये व्रत भगवान शिव को समर्पित हैं एकादशी की तरह ही इस व्रत को भी श्रेष्ठ माना गया हैं मान्यताओं के मुताबिक इस व्रत को रखने और विधि पूर्वक शिव की पूजा करने से वे अत्यंत प्रसन्न हो जाते हैं और जातक की सभी परेशानियां व बाधाओं को दूर करते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं प्रदोष व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा, तो आइए जानते हैं।

प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा—
पौराणिक कथा के मुताबिक प्रदोष व्रत पहली बार चंद्रदेव ने क्षय रोग से मुक्ति के लिए रखा था। कहा जाता है कि चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ हुआ था। इन्हीं 27 नक्षत्रों के योग से एक चंद्रमास पूरा होता हैं चंद्रमा खुद बहुत रूपवान थे और उनकी सभी पत्नियों में रोहिणी अत्यंत सुंदर थी। इसलिए उन सभी पत्नियों में चंद्रमा का विशेष लगाव रोहिणी से था। चंद्रमा रोहिणी से इतना प्रेम करते थे कि उनकी बाकी 26 पत्नियां उनके बर्ताव से दुखी हो गईं और उन्होंने दक्ष प्रजापति से उनकी शिकायत की। बेटियों के दुख से दुखी होकर दक्ष ने चंद्रम को श्राप दे दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रसित हो जाओं। धीरे धीरे चंद्रमा क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होने लगी। इससे पृथ्वी पर भी बुरा प्रभाव पड़ने लगा।

जब चंद्रदेव अंतिम सांसों के करीब पहुंचे तभी नारद मुनि ने उन्हें शिव की पूजा करने के लिए कहा। इसके बाद चंद्रदेव ने त्रयोदशी के दिन महादेव का व्रत रखकर प्रदोष काल में उनका पूजन किया। व्रत व पूजन से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मृत्युतुल्य कष्ट से मुक्त कर पुनर्जीवन प्रदान किया और अपने मस्तक पर धारण कर लिया। चंद्रमा को पुनर्जीवन मिलने के बाद लोग अपने कष्टों की मुक्ति के लिए हर मास की त्रयोदशी तिथि को शिव का व्रत पूजन करने लगे। इस व्रत में प्रदोष काल में शिव का पूजन किया जाता हैं इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता हैं।