खेलों के हीरो और पर्दे के भीम: जब प्रवीण सोबती को देखकर बीआर चोपड़ा ने नहीं लिया था उनका ऑडिशन
मुंबई, 5 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत के मनोरंजन जगत में कई ऐसे कलाकार हुए, जिनका सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं रहा। लंबे-चौड़े, मजबूत कद-काठी वाले एथलीट प्रवीण कुमार सोबती उन्हीं चेहरों में से एक थे। स्पोर्ट्स में नाम कमाने के बाद वह अभिनय की दुनिया में कैसे आए और पर्दे पर छाए, इसकी भी दिलचस्प कहानी है।
प्रवीण कुमार सोबती का जन्म 6 दिसंबर 1947 को पंजाब के तरनतारन जिले के सरहाली कलां गांव में हुआ था। बचपन से ही वे अपनी ऊंचाई और ताकत की वजह से सबका ध्यान खींचते थे। स्कूल में खेल-कूद में इतना अच्छा प्रदर्शन किया कि परिवार ने भी उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। उनका रुझान एथलेटिक्स की ओर था। 18 साल की उम्र में उन्हें सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) में नौकरी मिल गई। यहीं रहते हुए अधिकारियों ने उनकी एथलेटिक क्षमता पर ध्यान दिया और उन्हें पेशेवर प्रशिक्षण दिलाया। इसी के बाद उनका असली स्पोर्ट्स सफर शुरू हुआ।
1960 और 70 के दशक में प्रवीण कुमार भारत के शीर्ष हैमर और डिस्कस थ्रो खिलाड़ियों में गिने जाते थे। उन्होंने 1966 के एशियाई खेलों में डिस्कस थ्रो में स्वर्ण और हैमर थ्रो में कांस्य पदक जीता। इसी वर्ष कॉमनवेल्थ गेम्स में हैमर थ्रो में रजत पदक भी हासिल किया, जो आज तक भारत का इस स्पर्धा में एकमात्र पदक माना जाता है। 1970 के एशियाई खेलों में उन्होंने एक बार फिर डिस्कस थ्रो में गोल्ड जीतकर अपना दबदबा दिखाया। 1974 के एशियाई खेलों में वे डिस्कस थ्रो के लिए रजत पदक लेकर लौटे।
प्रवीण कुमार सोबती ने 1968 मेक्सिको और 1972 म्यूनिख ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया। खेलों में उनके शानदार योगदान के लिए उन्हें 1967 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह वही समय था जब वे देश के सबसे मजबूत और लोकप्रिय एथलीट बन चुके थे।
खेल से लेकर एक्टिंग तक का सफर पूरी तरह संयोग भरा था। स्पोर्ट्स करियर के अंतिम दौर में एक फिल्म निर्देशक ने सिर्फ उनकी कद-काठी देखकर उन्हें फिल्म में लेने का प्रस्ताव दिया। एक इंटरव्यू में प्रवीण कुमार सोबती ने खुद बताया था कि यह मौका उन्हें अचानक मिला और उन्होंने इसे सिर्फ इसलिए स्वीकार किया क्योंकि उन्हें लगा कि इससे वे लाइमलाइट में बने रहेंगे।
1982 में आई फिल्म 'रक्षा' के जरिए उन्होंने फिल्मों में कदम रखा। इस दौरान उन्हें खबर मिली कि बीआर चोपड़ा टीवी धारावाहिक महाभारत बना रहे हैं और भीम के किरदार के लिए किसी दमदार इंसान की तलाश है। जब प्रवीण उनसे मिलने के लिए कमरे में दाखिल हुए तभी बीआर चोपड़ा चहककर बोल उठे- 'एकदम परफेक्ट! यही है हमारा भीम।' इसके बाद प्रवीण को ऑडिशन देने तक की जरूरत नहीं पड़ी। 'महाभारत' में भीम की भूमिका ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया और प्रवीण कुमार सोबती भारतीय टेलीविजन के सबसे यादगार किरदारों में से एक बन गए। ये उनकी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था।
प्रवीण ने 'मेरी आवाज सुनो,' 'युद्ध,' 'इलाका,' 'मोहब्बत के दुश्मन,' 'शहंशाह,' 'लोहा,' और लगभग 50 से ज्यादा फिल्मों में अलग-अलग किरदार निभाए, लेकिन असली लोकप्रियता उन्हें 'महाभारत' के भीम के किरदार से मिली। उनकी ऊंचाई, ताकत, भारी आवाज और सादगी भरे संवाद उन्हें हर घर में पहचान दिला गए। इसके बाद उन्होंने बच्चों के पसंदीदा 'साबू' का किरदार भी निभाया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।
एक्टिंग के बाद उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा। 2013 में उन्होंने आम आदमी पार्टी के टिकट पर दिल्ली की वजीरपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, हालांकि वे जीत नहीं पाए। बाद में वे बीजेपी में शामिल हो गए। जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें गंभीर बीमारियों ने घेर लिया। बढ़ती उम्र में उनकी सेहत तेजी से गिरने लगी थी।
7 फरवरी 2022 को 74 साल की उम्र में उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। भले ही वह अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन स्पोर्ट्स में उनका योगदान, महाभारत के भीम की उनकी शानदार छवि और उनका अदम्य ऊर्जा उन्हें हमेशा जीवित रखेगा।
--आईएएनस
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