हरित बंदरगाहों पर भारत का बड़ा दांव, समुद्री विकास को मिलेगी नई रफ्तार
नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। भारत एक मजबूत समुद्री शक्ति बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। यह अब सिर्फ एक दीर्घकालिक लक्ष्य नहीं रहा, बल्कि देश की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर साफ दिखाई देने लगा है।
इंडिया नैरेटिव की एक रिपोर्ट के अनुसार, जो बंदरगाह पहले सिर्फ छोटे व्यापार केंद्र थे, अब बड़े आर्थिक केंद्र बन गए हैं, जहां ज्यादा माल की आवाजाही हो रही है और ये भारत के मैन्युफैक्चरिंग, निर्यात और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को मजबूत कर रहे हैं।
जैसे-जैसे बंदरगाहों की गतिविधियां बढ़ रही हैं, एक अहम सवाल सामने आया है- समुद्री पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना और जलवायु परिवर्तन को बढ़ाए बिना विकास कैसे जारी रह सकता है?
इसका जवाब भारत ने और भी स्पष्ट कर दिया है। अब सरकार मानती है कि हरित (ग्रीन) विकास कोई रुकावट नहीं है, बल्कि लंबे समय तक टिकाऊ विकास का यही एक रास्ता है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का लगभग 95 प्रतिशत विदेशी व्यापार मात्रा के हिसाब से बंदरगाहों के जरिए होता है। इसलिए बंदरगाह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत जरूरी हैं।
पिछले 10 वर्षों में बड़े बंदरगाहों पर माल की आवाजाही काफी बढ़ी है, जो करीब 581 मिलियन टन से बढ़कर लगभग 855 मिलियन टन हो गई है। यह बढ़ोतरी मजबूत मैन्युफैक्चरिंग और वैश्विक सप्लाई चेन से जुड़ाव को दिखाती है।
दूसरी ओर, बंदरगाह वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन के प्रमुख स्रोत भी हैं। कई बंदरगाह मैंग्रोव जंगलों, दलदली इलाकों, कोरल रीफ और घनी आबादी वाले तटीय शहरों के पास स्थित हैं।
इस दिशा में एक बड़ा बदलाव पहले से ही हो रहा है। 1908 के पुराने पोर्ट्स एक्ट की जगह इंडियन पोर्ट्स एक्ट, 2025 लागू किया गया है, जो समुद्री प्रशासन में एक अहम मोड़ माना जा रहा है।
अब पर्यावरण सुरक्षा को कानून का हिस्सा बना दिया गया है। टिकाऊ विकास अब कोई विकल्प नहीं, बल्कि जरूरी शर्त बन गया है। इसके साथ ही बंदरगाहों के विकास को जलवायु जिम्मेदारी से जोड़ा गया है।
इस सोच का केंद्र है 'मैरीटाइम इंडिया विजन 2030', जिसमें बंदरगाहों के विकास के साथ पर्यावरण संरक्षण को सबसे अहम रखा गया है। इसे 'हरित सागर ग्रीन पोर्ट गाइडलाइंस' का समर्थन भी मिला है, जिनमें साफ और मापने योग्य लक्ष्य तय किए गए हैं।
इन लक्ष्यों के अनुसार, 2030 तक बंदरगाहों को प्रति टन माल पर कार्बन उत्सर्जन 30 प्रतिशत तक कम करना होगा। साथ ही, बड़ी मात्रा में मशीनों को बिजली से चलाना होगा और 60 प्रतिशत से ज्यादा ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से लेनी होगी।
इन लक्ष्यों को 2047 तक और आगे बढ़ाया जाएगा, जिससे यह साफ होता है कि हरित बदलाव एक बार का काम नहीं, बल्कि लगातार चलने वाली प्रक्रिया है।
बंदरगाहों के रोजमर्रा के कामकाज में भी सुधार किया जा रहा है। 'शोर-टू-शिप पावर सिस्टम' से जहाज बंदरगाह पर खड़े रहते समय अपने डीजल इंजन बंद कर सकते हैं, जिससे पास के शहरों में हवा प्रदूषण कम होता है।
बिजली से चलने वाली क्रेन, वाहन और माल उठाने वाली मशीनें शोर कम करती हैं, ईंधन की बचत करती हैं और मजदूरों की सुरक्षा बढ़ाती हैं।
इन बदलावों से उन स्थानीय लोगों को सीधा फायदा मिलेगा, जो लंबे समय से बंदरगाहों के प्रदूषण का असर झेलते आ रहे हैं।
जल प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण भी अब प्राथमिकता बनते जा रहे हैं। नई तकनीकों में गंदे पानी को दोबारा इस्तेमाल करना, उसे कम मात्रा में बाहर छोड़ना और खुदाई से निकली चीजों का पुनः इस्तेमाल विभिन्न कार्यों में किया जा रहा है।
मैंग्रोव वनों को फिर से उगाने और हरियाली बढ़ाने से कार्बन को सोखने में मदद मिलती है और तटों को तूफानों व कटाव से बचाया जा सकता है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण अब ज्यादा हो रहे हैं।
--आईएएनएस
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