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'गर्भासन' से मजबूत करें कलाई, कंधे और रीढ़ की हड्डी, जानें सही विधि

 

नई दिल्ली, 5 दिसंबर (आईएएनएस)। योग भारतीय दर्शन और जीवनशैली का एक अमूल्य उपहार है। इसके नियमित करने से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि मन और आत्मा को शांति भी मिलती है। इसी कड़ी में एक योगासन है, जिसे करने मात्र से ही शरीर को स्थिरता और शांति मिलती है। इसका नाम है 'गर्भासन'।

यह एक ऐसा योगासन है, जिसके करने मात्र से तनाव, चिंता कम होती है और एकाग्रता बढ़ती है।

गर्भासन 'गर्भ' और 'आसन' शब्द से मिलकर बनता है। गर्भ का मतलब 'भ्रूण' होता है और आसन का मतलब 'मुद्रा'। इस आसन को करने पर शरीर की मुद्रा एक भ्रूण के समान होती है, जिस वजह से इसे गर्भासन कहा जाता है। इसको रोजाना कुछ मिनट करने मात्र से कई तरह के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ मिल सकते हैं।

गर्भासन को करने से कुछ दिन पहले कुक्कटासन का अभ्यास करें। जब आपका शरीर पूरी तरह संतुलित हो जाए, तभी गर्भासन का अभ्यास करना शुरू करें। इसे करने के लिए आप एक योगा मैट पर पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएं। फिर, कुक्कटासन की तरह अपने हाथों को जांघों और पिंडलियों के बीच में फंसाकर कोहनियों तक बाहर निकालें। अब अपनी दोनों कोहनियों को मोड़ते हुए हाथों से दोनों कान पकड़ने की कोशिश करें। इस दौरान शरीर का पूरा भार कूल्हों पर होना चाहिए। सामान्य रूप से सांस लेते रहें और अपनी क्षमतानुसार इस स्थिति में रहने के बाद सामान्य हो जाएं।

आयुष मंत्रालय के अनुसार, इस आसन को रोजाना करने से मानसिक शांति, तनाव में कमी और पीठ के निचले हिस्से में आराम मिलता है। साथ ही, प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती मिलती है। यह आसन शरीर के ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करने में भी सहायक है।

आयुर्वेद के अनुसार, गर्भासन से शरीर का लचीलापन और संतुलन शक्ति भी बढ़ती है। इसके करने से कलाइयों, भुजाओं, पैरों, कंधों, पीठ और रीढ़ की हड्डी को मजबूती मिलती है और कूल्हों, घुटनों से संबंधित समस्याएं दूर हो जाती हैं।

इसके अभ्यास से शरीर को कई तरह के फायदे मिलते हैं, लेकिन घाव या फिर अन्य कोई तकलीफ होने पर इस आसन का अभ्यास न करें।

--आईएएनएस

एनएस/वीसी