'पापा, मुझे माफ कर दीजिए...' शादी की रात प्रेमी संग भागी प्रेमिका, 2 दिन बाद इस हाल में मिला शव
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से एक बार फिर ऐसा समाचार सामने आया है, जिसने समाज की कठोर रीति-रिवाजों और भावनात्मक असहायता पर गहरी चोट की है। मसौली थाना क्षेत्र के लालपुर गांव में एक आम के बाग में बुधवार सुबह एक प्रेमी जोड़ा एक ही साड़ी से फंदे पर झूलता मिला। उनके पास से तीन पन्नों का सुसाइड नोट बरामद हुआ है, जिसमें उन्होंने समाज की बंदिशों के सामने आत्मसमर्पण करने की पीड़ा को शब्दों में उतारा।
मृतकों की पहचान 22 वर्षीय शिल्पा यादव और 28 वर्षीय भानु प्रताप सिंह के रूप में हुई है। दोनों एक-दूसरे से प्रेम करते थे, लेकिन समाज और परिवार के तय किए बंधनों ने उनके प्यार को स्वीकार नहीं किया। शिल्पा की शादी 5 मई को किसी और युवक से तय कर दी गई थी, जिसे वह स्वीकार नहीं करना चाहती थी।
जानकारी के मुताबिक, शादी के दिन जब ‘द्वार पूजा’ की रस्म चल रही थी, शिल्पा घर से चुपचाप निकल गई और अपने प्रेमी भानु के साथ चली गई। यह प्रेम की उड़ान नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिरोध से उपजे डर और अस्वीकृति से बचने की कोशिश थी। पीछे से उसके परिवार ने सामाजिक बदनामी से बचने के लिए उसकी भतीजी से विवाह संपन्न करा दिया।
शायद यही वह क्षण था, जब दोनों ने महसूस किया कि इस समाज में न उन्हें साथ जीने की इजाजत है और न ही खुलकर सोचने की। इसी मानसिक दबाव ने उन्हें वह रास्ता दिखाया, जो कभी किसी को नहीं अपनाना चाहिए—मृत्यु का रास्ता।
सुसाइड नोट में जो लिखा गया, वह हर उस युवा की आंतरिक चीख है जो प्रेम करता है पर सामाजिक स्वीकार्यता न मिलने से टूट जाता है। उन्होंने लिखा:
“यदि हम साथ नहीं रह सकते, तो हमने साथ मरने का फैसला किया है। हम एक-दूसरे से प्यार करते थे, इसलिए हम साथ मिलकर इसका खामियाजा भुगतेंगे। पापा, कृपया मुझे माफ कर दीजिए।”
पुलिस को सुबह 7 बजे सूचना मिली, जिसके बाद शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। रामनगर की सीओ गरिमा पंत के मुताबिक, मामला प्रथम दृष्टया आत्महत्या का है, और जांच की जा रही है।
ये घटना सवाल छोड़ जाती है:
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क्या आज भी प्रेम इतना बड़ा अपराध है कि लोग जान देने को मजबूर हो जाते हैं?
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क्या हम अपनी परंपराओं को इतना कठोर बना चुके हैं कि युवा उसमें घुट रहे हैं?
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और सबसे अहम सवाल — क्या समाज में विवाह अब भी प्रेम की जगह मजबूरी और दिखावे का प्रतीक बन गया है?
यह घटना केवल दो जानों का अंत नहीं है, बल्कि समाज के उस जड़ सोच का प्रतीक है जो प्रेम, स्वतंत्रता और व्यक्ति की इच्छा को नकार देता है।
जरूरत है, अब हम प्रेम को अपराध मानने की सोच बदलें और युवा पीढ़ी के मानसिक स्वास्थ्य, भावनाओं और स्वतंत्रता को भी महत्व दें—वरना ऐसे ‘मौत के गठबंधन’ फिर दोहराए जाएंगे।