बिहार: बगहा की सुमन लिख रहीं आत्मनिर्भरता की नई कहानी, मधुमक्खी पालन से लाखों की कमाई
पटना, 21 दिसंबर (आईएएनएस)। बिहार के बगहा अनुमंडल के कदमहिया निवासी एक महिला आज आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिख रही हैं। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के जंगल से सटे इस गांव में सुमन देवी अपने पति सत्येंद्र सिंह के साथ मिलकर मधुमक्खी पालन कर शुद्ध शहद का उत्पादन कर रही हैं।
इस शहद की मांग अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रही, बल्कि दिल्ली, महाराष्ट्र, झारखंड और दुबई तक पहुंच चुकी है। सुमन देवी बताती हैं कि करीब छह वर्ष पहले बागवानी मिशन की बीएचओ निधि की प्रेरणा से उन्होंने मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया।
इसके बाद बगहा के तत्कालीन एसडीएम दीपक मिश्रा के सहयोग से केंद्र सरकार की पीएमएफएमई योजना के तहत उन्हें 4 लाख रुपए का ऋण मिला, जो उनके लिए इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का अवसर बना। शुरुआत में गांव के लोगों और रिश्तेदारों ने मजाक बनाया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
वर्तमान में सुमन के पास 50 बी-बॉक्स हैं। सर्दियों के मौसम में हर बी-बॉक्स से औसतन 15 किलो शहद प्रति माह का उत्पादन हो रहा है। इस तरह करीब 750 किलो शहद का मासिक उत्पादन हो रहा है। एक किलो शहद की कीमत 500 रुपए है। इससे उन्हें हर महीने लगभग 3.75 लाख रुपए तक की आमदनी हो रही है। इस आमदनी से आज उनका परिवार आर्थिक रूप से मजबूत हो चुका है।
सुमन देवी बताती हैं कि पहले वह अपने पति के साथ दूसरे प्रदेश में एक फैक्ट्री में मजदूरी करती थीं। कठिन परिस्थितियों और सामाजिक तानों से परेशान होकर उन्होंने गांव लौटकर खुद का काम शुरू करने का फैसला किया। पहले जैविक खेती और मशरूम उत्पादन किया, फिर राजस्थान जाकर एक माह का प्रशिक्षण लेकर मधुमक्खी पालन शुरू किया।
आज सुमन 'रुद्र नेचुरल हनी एंड सोप' नाम से अपने उत्पाद की ब्रांडिंग कर रही हैं। शहद की सप्लाई सेना की कैंटीन से लेकर दुबई तक हो रही है। सुमन कहती हैं कि मेहनत और आत्मविश्वास से कोई भी महिला आत्मनिर्भर बन सकती है। अभी तक करीब 150 महिलाएं सुमन की प्रेरणा से स्वरोजगार शुरू कर चुकी हैं, जिनमें से 70 पूरी तरह स्थापित होकर अपना आर्थिक विकास कर रही हैं। सुमन आज सैकड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।
आईएएनएस से बातचीत में सुमन ने कहा कि अन्य जगहों की तुलना में यहां मधुमक्खी पालन करना आसान है, क्योंकि यहां जंगल बहुत बड़ा और फैला हुआ है। हमारे यहां से 100 मीटर की दूरी पर ही जंगल है। जंगल में 12 महीने कोई न कोई फूल खिलता रहता है। हमारे यहां का शहद बहुत अच्छा है। हम लखनऊ में लैब टेस्ट करवाते हैं। वहां के लोग भी हमारे यहां का शहद मंगवाते हैं। यह शहद औषधीय जड़ी-बूटियों की तरह है, जो और कहीं नहीं मिलता। हमारे यहां मिक्स फ्लेवर का शहद मिलता है।
सुमन का कहना है कि शुरुआत में काफी परेशानी हुई, लेकिन अब एसएसबी जवानों की कैंटीन में भी यह शहद जाता है। डीआईजी, कमांडेंट और स्थानीय लोग भी इसे खरीदते हैं। सरकार से हमें लोन मिला था, जिससे हमें फायदा हुआ। इस वक्त हमें अच्छा मुनाफा हो रहा है। इस बिजनेस में वक्त लगता है और नुकसान का खतरा भी रहता है। हमें ट्रेनिंग मिली थी और दो साल तक नुकसान झेलना पड़ा, लेकिन अब हम सफल हो गए हैं। मुझे कई सम्मान भी मिल चुके हैं। हमारे साथ अब 60-70 महिलाएं जुड़ चुकी हैं।
सुमन के पति सत्येंद्र सिंह ने कहा कि हमें जानकारी मिली थी कि उद्यान विभाग से मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग ली जा सकती है। हम 35 लोग एक साथ जाकर ट्रेनिंग लेकर काम शुरू किया, लेकिन सफल नहीं हो पाए। इसके बाद हम अधिकारियों से मिले, तो हमें ट्रेनिंग के लिए राजस्थान भेजा गया। वहां हमें बेहतर प्रशिक्षण मिला।
--आईएएनएस
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