अजमेर शरीफ: 814वें उर्स के समापन पर इंसानियत, सद्भाव और भाईचारे की अपील
अजमेर शरीफ, 29 दिसंबर (आईएएनएस)। अजमेर शरीफ में सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 814वें सालाना उर्स आस्था, प्रेम और मानव एकता के विराट संदेश के साथ संपन्न हो गया। इस अवसर पर गद्दी नशीं एवं चिश्ती फाउंडेशन के चेयरमैन हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि उर्स के दौरान 10 लाख से अधिक जायरीन ने अजमेर शरीफ पहुंचकर दुआ, इबादत और विनम्रता के साथ मानवता की साझी चेतना को मजबूत किया, जो मजहब, भाषा, राष्ट्रीयता और संस्कृति की सीमाओं से परे है।
हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने कहा कि यह उर्स केवल ऐतिहासिक परंपरा नहीं, बल्कि ऐसे समय में पूरी मानवता के लिए एक जीवंत दुआ है, जब दुनिया नैतिक चौराहे पर खड़ी है। उन्होंने कहा कि आठ सदियों से अधिक समय से अजमेर शरीफ एक आध्यात्मिक शरणस्थली रहा है, जहां दिल को सुकून, बंटी हुई आत्मा को एकता और मानवता को अपना नैतिक मार्गदर्शन मिलता रहा है। उन्होंने ख्वाजा गरीब नवाज के संदेश, 'सबसे प्रेम, किसी से द्वेष नहीं', को आज के दौर के लिए सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत बताते हुए कहा कि सच्ची आध्यात्मिकता लोगों को जोड़ती है, तोड़ती नहीं। उर्स के दौरान सामूहिक इबादत और मौन प्रार्थना ने यह साबित किया कि धर्म का असली स्वरूप एकता और करुणा है।
अपने संदेश में हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने वर्ष 2025 को मानवता के लिए कठिन परीक्षा का समय बताया। उन्होंने कहा कि आतंक, हिंसा, बढ़ता ध्रुवीकरण, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं और सामाजिक सौहार्द पर खतरे ने पूरी दुनिया को झकझोरा है। ऑस्ट्रेलिया में हुए आतंकी हमले, पहलगाम में मानवता के खिलाफ घृणित अपराध और बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि निर्दोषों की हर मौत एक आंकड़ा नहीं, बल्कि मानवता की पवित्र जिम्मेदारी का उल्लंघन है। अजमेर शरीफ की पवित्र धरती से उन्होंने बांग्लादेश में हिंदू समुदाय, विश्वभर के अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्गों की सुरक्षा, सम्मान और स्वतंत्रता के लिए विशेष प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि किसी एक समुदाय का दुख, पूरे मानव समाज का दुख है।
हाजी सैयद सलमान चिश्ती ने भारत के 1.4 अरब नागरिकों और वैश्विक समुदाय से अपील करते हुए कहा कि भारत की आत्मा हमेशा बहुलवाद, सह-अस्तित्व और आध्यात्मिक लोकतंत्र में रची-बसी रही है। अजमेर शरीफ इसका जीवंत प्रमाण है कि विविधता कमजोरी नहीं, बल्कि हमारी सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आस्था का उद्देश्य दिलों को ठीक करना है, कठोर बनाना नहीं, धर्म को जीवन की रक्षा करनी चाहिए, राजनीति का औजार नहीं बनना चाहिए और सच्ची भक्ति करुणा के कर्म से मापी जाती है।
2026 के लिए उन्होंने 'आशा का वर्ष' बनाने की सामूहिक अपील की। उन्होंने कहा कि 2026 शांति का वर्ष हो, जो न्याय पर आधारित हो, वर्चस्व पर नहीं; संवाद का वर्ष हो, जो विभाजन को पीछे छोड़े, शिक्षा का वर्ष हो, जो उग्रवाद को परास्त करे और सेवा का वर्ष हो, जो स्वार्थ पर विजय पाए। सरकारों, धार्मिक नेताओं, मीडिया, शिक्षाविदों और नागरिक समाज से उन्होंने मानव सभ्यता के नैतिक केंद्र को पुनर्स्थापित करने के लिए मिलकर काम करने का आह्वान किया।
मीडिया और आस्था संस्थानों की भूमिका पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि शब्द सोच को आकार देते हैं और कथाएं राष्ट्रों का निर्माण करती हैं, इसलिए सत्य, समझ और मानवीय गरिमा को डर और नफरत पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
अपने संदेश के अंत में उन्होंने कहा, "जहां नफरत ने दिलों को कठोर कर दिया है, वहां दिल नरम हों। मतभेद की जगह बातचीत हो। न्याय दया के साथ चले। मानवता अपनी साझा आत्मा को फिर से खोजे। अजमेर शरीफ की पवित्र दहलीज से जहां लोगों ने बिना शर्त मानवता को गले लगाया। यह प्रार्थना वैश्विक शांति, करुणा और सद्भाव के लिए उठती है। उर्स मुबारक।"
--आईएएनएल
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