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10 दिन की बच्ची के पेट में हुआ दर्द, चाची ने दाग दी गर्म लोहे की रॉड... हालत देख डॉक्टर के भी उड़े होश

 

महाराष्ट्र के अमरावती जिले के मेलघाट क्षेत्र में अंधविश्वास की वजह से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। चिखलदरा तालुका के दहेंद्री गांव में केवल 10 दिन की नवजात बच्ची को पेट दर्द से राहत दिलाने के नाम पर एक महिला ने गर्म लोहे की छड़ से दाग दिया, जिससे मासूम बच्ची बुरी तरह झुलस गई। यह दर्दनाक घटना समाज में व्याप्त अंधविश्वास और ग्रामीण इलाकों में फैलती हुई गलत प्रथाओं की गहरी छाया को उजागर करती है।

दर्दनाक घटना का पूरा विवरण

15 जून को दहेंद्री गांव में एक नवजात बच्ची का जन्म हुआ था। जन्म के कुछ ही दिनों बाद बच्ची की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। उसे पेट में दर्द और अन्य परेशानियों के कारण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) ले जाया गया। वहीं बच्ची की मां की चाची ने परिवार को एक घरेलू अंधविश्वास आधारित उपाय सुझाया। उसने दावा किया कि बच्ची के पेट में सूजन है और इसे ठीक करने के लिए ‘दम्मा’ नामक प्रथा अपनानी चाहिए।

‘दम्मा’ क्या है?

‘दम्मा’ एक अंधविश्वास पर आधारित चिकित्सा प्रथा है, जो खासकर ग्रामीण इलाकों में प्रचलित है। इस प्रक्रिया में बीमारी को दूर करने के लिए व्यक्ति के शरीर पर गर्म लोहे की छड़ से दागा जाता है। लोगों का मानना है कि इससे बीमारी शरीर से बाहर निकल जाती है। इस विश्वास के चलते बच्ची की मां की चाची ने गर्म लोहे की छड़ लेकर मासूम के पेट पर कई बार दाग किया। इस क्रूर कृत्य के बाद बच्ची की हालत और भी गंभीर हो गई।

बच्ची की हालत बिगड़ी, डॉक्टरों ने दी चेतावनी

बच्ची की चीख सुनकर परिवार के सदस्य घबरा गए और तुरंत शुक्रवार को उसे पुनः प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया। वहां के डॉक्टरों ने बच्ची के पेट पर गर्म लोहे के जलने के ताजा निशान देख हैरानी जताई। बच्ची को तत्काल प्राथमिक उपचार दिया गया और उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे अचलपुर के जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया। डॉक्टरों ने स्थानीय प्रशासन और पुलिस को भी सूचित किया। पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए आरोपी महिला को हिरासत में ले लिया।

पुलिस की कार्रवाई और कानूनी पहल

पुलिस ने आरोपी महिला के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 118(1) के तहत मामला दर्ज किया है। इसके अलावा, महाराष्ट्र मानव बलि एवं अन्य अमानवीय, अनैतिक व अघोरी प्रथा तथा काला जादू रोकथाम एवं उन्मूलन अधिनियम, 2013 की भी संबंधित धाराएं जोड़ी गई हैं। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि बच्ची अब खतरे से बाहर है और उसकी हालत स्थिर है। शनिवार को उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। पुलिस आरोपी महिला से पूछताछ कर रही है ताकि इस मामले के और पहलुओं का पता लगाया जा सके।

अंधविश्वास के खिलाफ सामाजिक चेतना की जरूरत

यह दर्दनाक मामला एक बार फिर से ग्रामीण इलाकों में फैले अंधविश्वास और उससे जुड़ी खतरनाक प्रथाओं की गंभीरता को दर्शाता है। ऐसे मामलों में शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से लोगों को वैज्ञानिक और चिकित्सा दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि अंधविश्वास आधारित व्यवहार केवल लोगों की जान को खतरे में डालता है, बल्कि सामाजिक विकास में भी बाधा उत्पन्न करता है। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए प्रमाणित चिकित्सा उपचार ही सर्वोत्तम समाधान है।