Shakeel Badayuni Biography Hindi: देश के मशहूर शायरों में शुमार शकील बदायूँनी का जीवन परिचय
शकील बदायूँनी (Shakeel Badayuni) का जन्म 3 अगस्त 1916 को बदायूँ में और मृत्यु 20 अप्रैल 1970 को हुई थी। ये एक महान शायर और गीतकार थे। तहजीब के शहर लखनऊ ने फ़िल्म जगत को कई हस्तियां दी हैं, जिनमें से एक गीतकार शकील बदायूँनी भी हैं। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित होकर उन्होंने अपनी आपूर्ति विभाग की सरकारी नौकरी छोड़ दी थी और वर्ष 1946 में दिल्ली से मुंबई आ गये थे। शकील बदायूँनी को अपने गीतों के लिये लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार वर्ष 1960 में प्रदर्शित "चौदहवी का चांद" फ़िल्म के 'चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो..' गाने के लिये दिया गया था, तो आईये आज आपको मिलाएं इनके जीवन से करीब से...
| नाम | शकील बदायूँनी |
| पूरा नाम | शकील अहमद ‘बदायूँनी’ |
| जन्म | 3 अगस्त 1916 |
| जन्म स्थान | बदायूँ, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | मोहम्मद जमाल अहमद |
| माता का नाम | – |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| धर्म | – |
| जाति | – |
शकील बदायूँनी का जन्म | Shakeel Badayuni Birth
शकील बदायूँनी का जन्म 3 अगस्त 1916 को उत्तर प्रदेश के शहर बदायूँ में हुआ था। उनका वास्तविक नाम शकील अहमद ‘बदायूँनी’ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद जमाल अहमद था।
शकील बदायूँनी की शिक्षा | Shakeel Badayuni Education
उत्तर प्रदेश के बदायूँ क़स्बे में 3 अगस्त 1916 को जन्मे शकील अहमद उर्फ शकील बदायूँनी का लालन पालन और शिक्षा नवाबों के शहर लखनऊ में हुई। अलीगढ़ से बी.ए. पास करने के बाद वर्ष 1942 मे वह दिल्ली पहुंचे जहाँ उन्होंने आपूर्ति विभाग में आपूर्ति अधिकारी के रूप में अपनी पहली नौकरी की। इस बीच वह मुशायरों में भी हिस्सा लेते रहे जिससे उन्हें पूरे देश भर में शोहरत हासिल हुई। अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित शकील बदायूँनी ने आपूर्ति विभाग की नौकरी छोड़ दी और वर्ष 1946 में दिल्ली से मुंबई आ गये।
शकील बदायूँनी का शायर बनना | Shakeel Badayuni As A Shayar
लखनऊ ने उन्हें एक शायर के रूप में शकील अहमद से शकील बदायूँनी बना दिया। अपने दूर के एक रिश्तेदार और उस जमाने के मशहूर शायर जिया उल कादिरी से शकील बदायूँनी ने शायरी के गुर सीखे। शकील बदायूँनी ने अपनी शायरी में ज़िंदगी की हकीकत को बयाँ किया। उन्होंने ऐसे गीतों की रचना की जो ज्यादा रोमांटिक नहीं होते हुये भी दिल की गहराइयों को छू जाते थे।
शकील बदायूँनी का परिवार | Shakeel Badayuni Family
शकील बदायुनी साहब के पिता "मोहम्मद जमाल अहमद सोखता कादरी" बदायूं के प्रतिष्ठित विद्वान और उपदेशक थे इस कारण घर का माहोल भी शायराना और धार्मिक था | आपके पिता भी शायर थे जिनका नाम था और सोखता तखल्लुस से शेर कहते थे, चाचा "ज़िया उल कादरी नात", मंक्बत के उस्ताद शायर थे उनकी लिखी हुई "शरहे कलामे मोमिन" एक ज़माने में बहस और वाद-विवाद का विषय थी।
शकील बदायूँनी का करियर | Shakeel Badayuni Career
मुंबई में उनकी मुलाकात उस समय के मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उर्फ कारदार साहब और महान् संगीतकार नौशाद से हुई। यहाँ उनके कहने पर उन्होंने ‘हम दिल का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे…’ गीत लिखा। यह गीत नौशाद साहब को काफ़ी पसंद आया जिसके बाद उन्हें तुरंत ही कारदार साहब की दर्द के लिये साईन कर लिया गया। उन्हे फिल्म दर्द के गीत लिखने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। फिल्म के सारे गीत हिट रहे और फिर उन्होने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बैजु बावरा, मदर इंडिया, मुगले आजम, चौदहवी का चाँद , साहब बीवी और गुलाम जैसी फिल्मों के गानों से लोगों को दीवाना बना दिया।
शकील बदायूँनी का बॉलीवुड करियर | Shakeel Badayuni Bollywood Career
मुंबई में उनकी मुलाकात उस समय के मशहूर निर्माता ए.आर.कारदार उर्फ कारदार साहब और महान् संगीतकार नौशाद से हुई। यहाँ उनके कहने पर उन्होंने 'हम दिल का अफ़साना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे...' गीत लिखा। यह गीत नौशाद साहब को काफ़ी पसंद आया जिसके बाद उन्हें तुरंत ही कारदार साहब की दर्द के लिये साईन कर लिया गया।
शकील बदायूँनी के गीत | Shakeel Badayuni Songs
शकील बदायूँनी ने क़रीब तीन दशक के फ़िल्मी जीवन में लगभग 90 फ़िल्मों के लिये गीत लिखे। उनके फ़िल्मी सफर पर एक नजर डालने से पता चलता है कि उन्होंने सबसे ज्यादा फ़िल्में संगीतकार नौशाद के साथ ही की। वर्ष 1947 में अपनी पहली ही फ़िल्म दर्द के गीत 'अफ़साना लिख रही हूँ...' की अपार सफलता से शकील बदायूँनी कामयाबी के शिखर पर जा बैठे। शकील बदायूँनी के रचित प्रमुख गीत निम्नलिखित हैं-
- अफ़साना लिख रही हूँ... (दर्द)
- चौदहवीं का चांद हो या आफ़ताब हो... (चौदहवीं का चांद)
- जरा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये.. (बीस साल बाद, 1962)
- नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं... (सन ऑफ़ इंडिया)
- गाये जा गीत मिलन के.. (मेला)
- सुहानी रात ढल चुकी.. (दुलारी)
- ओ दुनिया के रखवाले.. (बैजू बावरा)
- दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पडे़गा (मदर इंडिया)
- दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात.. (कोहिनूर)
- प्यार किया तो डरना क्या...(मुग़ले आज़म)
- ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और ग़ुलाम, 1962)
- नैन लड़ जइहें तो मन वा मा कसक होइबे करी.. (गंगा जमुना)
- दिल लगाकर हम ये समझे ज़िंदगी क्या चीज़ है.. (ज़िंदगी और मौत, 1965)
रचनाएँ
- सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से / शकील बँदायूनी
- ग़मे-आशिक़ी से कह दो / शकील बँदायूनी
- कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है / शकील बँदायूनी
- शायद आगा़ज़ हुआ फिर किसी अफ़साने का / शकील बँदायूनी
- जीने वाले कज़ा से डरते हैं / शकील बँदायूनी
- हंगामा-ऐ-ग़म से तंग आकर / शकील बदायूँनी
- ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया / शकील बदायूँनी
- मेरे हम-नफ़स, मेरे हम-नवा, मुझे दोस्त बनके दग़ा न दे / शकील बँदायूनी
- ज़िन्दगी का दर्द लेकर इन्क़लाब आया तो क्या / शकील बदायूँनी
- ख़ुश हूँ कि मेरा हुस्न-ए-तलब काम तो आया / शकील बँदायूनी
- दूर है मंजिल राहें मुश्किल आलम है तनहाई का / शकील बँदायूनी
- मेरी ज़िन्दगी है ज़ालिम, तेरे ग़म से आश्कारा / शकील बँदायूनी
- शिकवा-ए-इज़तराब कौन करे / शकील बँदायूनी
- तुम ने ये क्या सितम किया ज़ब्त से काम ले लिया / शकील बँदायूनी
- ये ऐश-ओ-तरब के मतवाले बेकार की बातें करते हैं / शकील बँदायूनी
- बस इक निगाह-ए-करम है काफ़ी / शकील बँदायूनी
- आँख से आँख मिलाता है कोई / शकील बँदायूनी
- रूह को तड़पा रही है उन की याद / शकील बदायूँनी
- ज़मीं पे फ़स्ल-ए-गुल आई फ़लक पर माहताब आया / शकील बदायूँनी
- तम्हीद-ए-सितम और है तकमील-ए-जफ़ा और / शकील बँदायूनी
- बना बना के तमन्ना मिटाई जाती है / शकील बँदायूनी
- तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री / शकील बँदायूनी
- मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्करा मुझे ज़िन्दगी का अलम नहीं / शकील बँदायूनी
- उन से उम्मीद-ए-रूनुमाई है / शकील बँदायूनी
- कोई आरज़ू नहीं है, कोई मु़द्दा नहीं है/ शकील बँदायूनी
- कोशिशे-तर्क़े-मुहब्बत रायगाँ होने लगी / शकील बदायूँनी
- मताअ-एग़मे-आशिक़ी माँग लूँगा / शकील बदायूँनी
- ज़िंदगानी ख़ुद हरीफ़े-ज़िंदगानी हो गई / शकील बदायूँनी
- बेझिझक आ गए बेख़तर आ गए / शकील बदायूँनी
- अश्के-ग़म ज़ाहिर भी होकर राज़दारों में रहा / शकील बदायूँनी
- ज़ौके-लतीफ़-ओ-चश्मे-हकीक़त-निगम कहाँ / शकील बदायूँनी
- पिनहाँ दिले-बेताब में अरमान बहुत हैं / शकील बदायूँनी
- क्या क़शिश हुस्ने-रोज़गार में है / शकील बदायूँनी
- ज़िंदगी लेके अरबाबे-ज़ाँ चल दिए / शकील बदायूँनी
- तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री ? / शकील बदायूँनी
- हंगामा-ए-ग़म से तंग आकर इज़हारे-मर्सरत कर बैठे / शकील बदायूँनी
- ज़ौक़े-सितम जुनूँ की हदों से गुज़र गया / शकील बदायूँनी
- गुलशन हो निगाहों में तो ज़न्नत न समझना / शकील बदायूँनी
- करने दो अगर क़त्ताले-ज़हाँ तलवार की बात करते हैं / शकील बदायूँनी
- शोला बकफ़ है ज़िन्दगी अम्नो-अमाँ की ख़ैर हो / शकील बदायूँनी
- तसावीरे-क़ुहन अब कौन देखे दिल के पर्दे में / शकील बदायूँनी
- जज़्बात की रौ में बह गया हूँ / शकील बदायूँनी
- आँखों से दूर, सुबह के तारे चले गए / शकील बदायूँनी
- फ़ितरत के हसीं नज़्ज़ारों में पुरकैफ़ ख़ज़ाने और भी हैं / शकील बदायूँनी
- तफ़ाँ-ब-दोश आजा ए गर्दिशे-ज़माना / शकील बदायूँनी
- ज़ादा-ए-इश्क़ में गिर-गिर के सँभलते रहना / शकील बदायूँनी
बदायूँनी के जोड़ीदार | Shakeel Badayuni Partners
शकील बदायूँनी की जोड़ी प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद और हेमंत कुमार के साथ खूब जमी। शकील बदायूँनी ने हेमन्त कुमार के संगीत निर्देशन में बेकरार कर के हमें यूं न जाइये.., कहीं दीप जले कहीं दिल.. जरा नजरों से कह दो जी.. निशाना चूक ना जाये.. (बीस साल बाद, 1962) और भंवरा बड़ा नादान है बगियन का मेहमान है.., ना जाओ सइयां छुड़ा के बहियां.. (साहब बीबी और ग़ुलाम, 1962), जब जाग उठे अरमान तो कैसे नींद आये.. (ज़िंदगी और मौत, 1963) जैसे गीत आये। सी. रामचन्द्र के संगीत से सजा उनका दिल लगाकर हम ये समझे ज़िंदगी क्या चीज़ है.. (ज़िंदगी और मौत, 1965) गीत आज भी बहुत पसंद किया जाता है। निर्माता-निर्देशक ए.आर.कारदार की फ़िल्मों में भी शकील बदायूँनी के लिखे गीतों का अहम योगदान रहा है। इन दोनों की जोड़ी की सबसे पहली फ़िल्म वर्ष 1947 में प्रदर्शित फ़िल्म दर्द थी और शकील बदायूँनी की पहली ही फ़िल्म थी जो सुपरहिट भी हुई थी। इसके बाद इन दोनों की जोड़ी ने दुलारी, दिल्लगी, दास्तान, जादू, दीवाना, दिले नादान, दिल दिया दर्द लिया जैसी कई सुपरहिट फ़िल्मों मे एक साथ काम किया। कारदार साहब के अलावा उन्होंने गुरुदत्त, महबूब खान, के आसिफ, राज खोसला, नितिन बोस की फ़िल्मों को भी अपने गीत से सजाया है। अभिनय सम्राट दिलीप कुमार की फ़िल्मों की कामयाबी में भी शकील बदायूँनी के रचित गीतों का अहम योगदान रहा है। इन दोनों की जोड़ी वाली फ़िल्मों में मेला, बाबुल, दीदार, आन, अमर, उड़न खटोला, कोहिनूर, मुग़ले आज़म, गंगा जमुना, लीडर, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, संघर्ष और आदमी शामिल है।
शकील बदायूँनी के सम्मान और पुरस्कार | Shakeel Badayuni Awards And Achievements
शकील बदायूँनी को अपने गीतों के लिये लगातार तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार से नवाजा गया। उन्हें अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार वर्ष 1960 में प्रदर्शित चौदहवी का चांद फ़िल्म के चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो.. गाने के लिये दिया गया था। वर्ष 1961 में प्रदर्शित फ़िल्म 'घराना' के गाने हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं.. के लिये भी सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फ़िल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके अलावा 1962 में भी शकील बदायूँनी फ़िल्म 'बीस साल बाद' में कहीं दीप जले कहीं दिल.. गाने के लिये फ़िल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया।
फ़िल्मफेयर पुरस्कार | Shakeel Badayuni Filmfare Awards
- वर्ष 1960 में चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो... (चौदहवीं का चांद)
- वर्ष 1961 में हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं... (घराना)
- वर्ष 1962 में कहीं दीप जले कहीं दिल... (बीस साल बाद, 1962)
शकील बदायूँनी का निधन | Shakeel Badayuni Death
लगभग 54 वर्ष की उम्र मे 20 अप्रैल 1970 को उन्होंने अपनी अंतिम सांसें ली। शकील बदायूँनी की मृत्यु के बाद उनके मित्रों नौशाद, अहमद जकारिया और रंगून वाला ने उनकी याद मे एक ट्रस्ट 'यादें शकील' की स्थापना की ताकि उससे मिलने वाली रकम से उनके परिवार का खर्च चल सके।