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Sarveshwar Dayal Saxena Poem: विख्यात हिंदी कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता- 'तुम धूल हो-पैरों से रौंदी हुई धूल'

 

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर, 1927 को विश्वेश्वर दयाल के घर हुआ। फलतः सर्वेश्वर जी की आरंभिक शिक्षा-दीक्षा भी ज़िला बस्ती, उत्तर प्रदेश में ही हुई। बचपन से ही वे विद्रोही प्रकृति के थे। उनकी रचना तथा पत्रकारिता में उनका लेखन इसकी बानगी पेश करता है। कवि सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की प्रारंभिक शिक्षा बस्ती के राजकीय हाईस्कूल से हुई थी। इसके बाद उनकी उच्च शिक्षा काशी और इलाहबाद में पूरी हुई। उन्होंने ऐंग्लो संस्कृत उच्च विद्यालय, बस्ती से हाई स्कूल परीक्षा पास की। उसके बाद उन्होंने क्वींस कॉलेज, वाराणसी में अध्ययन किया तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम०ए० की परीक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की। अध्यापन और सरकारी कार्यालय में नौकरी के बाद आकाशवाणी में कार्य किया, फिर अज्ञेय के आमंत्रण पर ‘दिनमान’ अख़बार से जुड़ गए। कुछ समय बाल पत्रिका ‘पराग’ के संपादक भी रहे। 

समकालीन हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता में जहां तक जनता से जुड़े क़लमकारों का सवाल है, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी बहुमुखी रचनात्मक प्रतिभा के साथ एक जवाब की तरह सामने आते हैं। कविता हो या कहानी, नाटक हो या पत्रकारिता, उनकी जनप्रतिबद्धता हर मोर्चे पर कामयाब है, तो आईये आज पढ़ें सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता- 'तुम धूल हो-पैरों से रौंदी हुई धूल'...

तुम धूल हो—
पैरों से रौंदी हुई धूल।
बेचैन हवा के साथ उठो,
आंधी बन
उनकी आंखों में पड़ो
जिनके पैरों के नीचे हो।

ऐसी कोई जगह नहीं
जहां तुम पहुंच न सको,
ऐसा कोई नहीं
जो तुम्हें रोक ले।
तुम धूल हो
पैरों में रौंदी हुई धूल,
धूल से मिल जाओ।

दो

तुम धूल हो
जिंदगी की सीलन से
दीमक बनो।

रातों-रात
सदियों से बंद इन
दीवारों की
खिड़कियां
दरवाजे
और रोशनदान चाल दो।

तुम धूल हो
ज़िंदगी की सीलन से जन्म लो
दीमक बनो, आगे बढ़ो।

एक बार रास्ता पहचान लेने पर
तुम्हें कोई ख़त्म नहीं कर सकता।