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Top Trending Shayar: भारत के वो मशहूर शायर जिनकी शायरी का दीवाना है जमाना, मिर्जा गालिब से लेकर गुलजार तक ये सब है शामिल 

 

भारत हमेशा से ही कवि और शायरों की धरती रहा है। देश में एक से एक कवि और शायर हुए। भले ही वो आज न हों लेकिन उनकी नज्म या कविता हर किसी को दीवाना बना देती है, तो आईये आज हम आपको देश के महान शायरों को बारे में बताएंगे, जिनकी नज्म और शायरी लोगों की जुबान पर रहती हैं...

मिर्जा गालिब (Mirza Galib)

मिर्जा गालिब का असली नाम 'मिर्जा असदुल्लाह खां' था। उनके नाम के पीछे 'गालिब' जुड़ गया तो उन्हें सब मिर्जा गालिब बोलने लगे। उनका जन्म 27 दिसंबर 1797 को आगरा में हुआ था। वह उर्दू एवं फारसी भाषा के महारथी थे और उनकी अधिकतर रचनाएं इन्हीं भाषा में थीं। भक्ति और सौंदर्य रस से परिपूर्ण गीत काव्य के कारण उनकी रचनाओं में प्रेम झलकता था। उनकी शायरी का आज भी हर कोई दीवाना है।

“हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, 
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है”      
           

गुलजार (Gulzar)

लोग बड़ी तादाद में गुलजार साहब के फैन हैं। उन्होंने 1968 में 'आशीर्वाद' फिल्म के डायलॉग लिखे थे। इसके बाद एक से बढ़कर एक फिल्में आती गईं और वे ऊंचाइयां चढ़ते गए। उन्हें 'स्लमडॉग मिलेनियर' मूवी के जय हो गाने के लिए ऑस्कर अवॉर्ड भी मिला था। जिंदगी कैसी है पहेली : आनंद (1971), यारा सीली सीली : लेकिन (1990), तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी : मासूम (1983) जैसे कई गीत लोगों की जुबान पर आज भी हैं।

“सुनो…
जब कभी देख लुं तुमको
तो मुझे महसूस होता है कि
दुनिया खूबसूरत है।”

फैज अहमद फैज (Faiz Ahmad Faiz)

फैज अहमद फैज का जन्म 13 फरवरी 1911 को लाहौर के पास सियालकोट शहर, पाकिस्तान (तत्कालीन भारत) में हुआ था। वह उर्दू, अरबी और फारसी भाषा में रचनाएं लिखते थे। उनकी रचना 'ज़िन्दान-नामा' को काफी पसंद किया जाता है। उन्होंने कई रचनाएं की थीं।

'और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा' 

राहत इंदौरी (Rahat Indori)

हिंदी फिल्मों के फेमस गीतकार और उर्दू शायर राहत इंदौरी का कोरोना संक्रमण के कारण 11 अगस्त 2020 को निधन हो गया। उनका जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर में 1 जनवरी 1950 को हुआ था। उन्होंने उर्दू साहित्य में पीजी एवं पीएचडी की थी। 19 साल की उम्र में कॉलेज के दिनों में उन्होंने पहली शायरी सुनाई थी। तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है, एम बोले तो मास्टर मैं मास्टर, देखो-देखो जानम हम, दिल अपना तेरे लिए लाए, दिल को हजार बार रोका, चोरी-चोरी जब नजरे मिलीं जैसे कई उनके फेमस गाने थे।

“बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं
सितारे नोच कर ले जाऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
वबा फैली हुई है हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर ज़ालिम से डर जाने का नहीं”

बशीर बद्र (Bashir Badr)

डॉ. बशीर बद्र का जन्म 15 फरवरी 1936 को  कानपुर में माना जाता है। फिलहाल वे भोपाल में रहते हैं। हालांकि वह बोलने की स्थिति में नहीं हैं। कई बार वह अपने शेर खुद भूल जाते हैं लेकिन उन्हें याद दिलाना पड़ता है। उनकी रचनाएं आज भी लोगों के दिल और दिमाग में बसी हुई है। उन्हें पद्मश्री सम्मान प्राप्त है। वह हिंदी और उर्दू भाषा के शायर हैं।

"सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा
हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा"