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Momin Khan Momin Biography In Hindi: देश के मशहूर उर्दू शायर मोमिन ख़ाँ 'मोमिन' का जीवन परिचय 

 

हक़ीम मोमिन ख़ान 'मोमिन' मुग़ल काल के अंतिम दौर के शाइर थे। वह मिर्ज़ा ग़ालिब व ज़ौक़ के समकलीन थे और बहादुर शाह ज़फ़र के मुशायरों में भाग लेने लालक़िले जाया करते थे। वह अत्यंत भावुक और संवेदनशील शायर थे। आमतौर पर उनकी पूरी शायरी शृंगार रस से भरी हुई है। इश्क़ और मुहब्बत से सम्बद्ध नज़्मों और ग़ज़लों में उन्होंने बहुत ही नाज़ुक व मधुर भाषा का इस्तेमाल किया है। उनके कई शे'र आज भी वक़्त-ज़रूरत मुहावरे के रूप म एं बोले जाते हैं। वह मुशायरों में तरन्नुम के साथ अपनी रचनाएँ पढ़ते थे। उनके स्वर में गज़ब का लोच था। रचनाओं में विलक्षण उपमाएँ व अलंकार पिरोकार वह श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते थे। इसके अलावा उनका एक शे'र दिया जा रहा है जिसमें उन्होंने बड़ी मासूमियत से अपनी माशूक़ा से शिकायत की है:

मैंने तुमको दिल दिया, तुमने मुझे रुसवा किया
मैंने तुमसे क्या किया और तुमने मुझसे क्या किया

हकीम मोमिन ख़ाँ मोमिन

हकीम मोमिन ख़ाँ

स्थानीय नाम مومِن خاں مومِن
जन्म मोहम्मद मोमिन
1801
कूचा चेलान, दिल्ली
मौत 14 मई 1852
दिल्ली
कब्र मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज की पार्किंग
दूसरे नाम मोमिन
पेशा शायर, हकीम
काल मुग़ल काल
विधाs दर्शन, अध्यात्मवाद
उल्लेखनीय काम कुल्लियाते-मोमिन
रिश्तेदार सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम

मोमिन ख़ाँ 'मोमिन' का जन्म और शुरुवाती जीवन | Momin Khan Momin Birth And Early Life

मोमिन का दिल्ली में सन 1800 में जन्म हुआ था उनकी आरम्भिक शिक्षा अरबी में हुई थी। वह कुशाग्र बुद्धि के थे और उनकी स्मरणशक्ति भी विलक्षण थी। हक़ीमी उन्हें विरासत में मिली ही थी। मोमिन उच्चकोटि के शायर तो थे ही आला दर्ज़े के हक़ीम, ज्योतिष और शतरंज के खिलाड़ी भी थे। उनके पुरखे मूलत: कश्मीर से थे। दिल्ली में जब शा आलम गद्दीशीन था, तब उनके दादा दिल्ली आकर बस गये थे। हक़ीमी इनका ख़ानदानी पेशा था, इनका दादा और पिता शाही हक़ीम थे।

मोमिन ख़ाँ 'मोमिन' का परिवार | Momin Khan Momin Family 

हकीम मोमिन ख़ाँ मोमिन का ताल्लुक़ एक कश्मीरी घराने से था। इनका असल नाम मोहम्मद मोमिन था। इनके दादा हकीम मदार ख़ाँ शाह आलम के ज़माने में दिल्ली आए और शाही हकीमों में शामिल हो गए। मोमिन दिल्ली के कूचा चेलान में 1801 ई॰ में पैदा हुए। इनके दादा को बादशाह की तरफ़ से एक जागीर मिली थी जो नवाब फ़ैज़ ख़ान ने ज़ब्त करके एक हज़ार रुपये सालाना पेंशन मुक़र्रर कर दी थी। ये पेंशन इनके ख़ानदान में जारी रही। मोमिन ख़ान का घराना बहुत मज़हबी था।

मोमिन ख़ाँ 'मोमिन' का शायरी करियर | Momin Khan Momin Career

इन्होंने अरबी की शिक्षा शाह अबदुल क़ादिर देहलवी से हासिल की। फ़ारसी में भी इनको महारत थी। धार्मिक ज्ञान की शिक्षा इन्होंने मकतब में हासिल की। सामान्य ज्ञान के इलावा इनको चिकित्सा, ज्योतिष, गणित, शतरंज और संगीत से भी दिलचस्पी थी। जवानी में क़दम रखते ही इन्होंने शायरी शुरू कर दी थी और शाह नसीर से संशोधन कराने लगे थे लेकिन जल्द ही इन्होंने अपने अभ्यास और भावनाओं की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति के द्वारा दिल्ली के शायरों में अपनी ख़ास जगह बना ली। आर्थिक रूप से इनका सम्बंध मध्यम वर्ग से था। ख़ानदानी पेंशन एक हज़ार रुपये सालाना ज़रूर थी लेकिन वो पूरी नहीं मिलती थी जिसका शिकवा इनके फ़ारसी पत्रों में मिलता है।

मोमिन को शायरी करने का शौक़ बचपन से ही था। जवानी में तो यह जुनून की हद तक जा पहुँचा था। उनका मिजाज़ आशिक़ाना था, जो उनकी शायरी में झलकता भी है। इश्क़-मोहब्बत की रचनाएँ लिखते समय उपमाओं व अलंकारों के ऐसे नगीने पिरोते थे कि कही गयी बात दिल की गहराइयों को छू जाती है। आशिक़ की भावनाओं को अभिव्यक्ति देते समय उनकी कल्पना शक्ति धरती-आकाश के कुलाबे मिला देती है। मोमिन ने शुरुआती दौर में अपना उस्ताद शाह नसीर को बनाया था। लेकिन बाद में उन्हें छोड़ दिया, फिर कभी किसी को उस्ताद नहीं किया। मोमिन दिल्ली के वासी थे। ज़ौक़ की तरह वह भी दिल्ली की गलियाँ छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी, दिल्ली की भाषा की सारी नज़ाक़त उनकी शायरी में नज़र आती है।

मोमिन ख़ाँ 'मोमिन' का साहित्यिक परिचय | Momin Khan Momin Literature 

मोमिन के यहाँ एक ख़ास क़िस्म की बेपरवाही की शान थी। धन-दौलत की तलब में इन्होंने किसी का क़सीदा नहीं लिखा। इनके नौ क़सीदों में से सात मज़हबी नौईयत के हैं। एक क़सीदा इन्होंने राजा पटियाला की शान में लिखा। इसका क़िस्सा यूँ है कि राजा साहिब को इनसे मिलने की जिज्ञासा थी। एक रोज़ जब मोमिन उनके आवास के सामने से गुज़र रहे थे, उन्होंने आदमी भेज कर इन्हें बुला लिया, बड़ी इज़्ज़त से बिठाया और बातें कीं और चलते वक़्त इनको एक हथिनी पर सवार कर के विदा किया और वो हथिनी इन्हीं को दे दी। मोमिन ने क़सीदे के ज़रिये उनका शुक्रिया अदा किया। दूसरा क़सीदा नवाब टोंक की ख़िदमत में न पहुँच पाने का मुआफ़ीनामा (क्षमापत्र) है। कई रियासतों के नवाबीन इनको अपने यहाँ बुलाना चाहते थे लेकिन ये कहीं नहीं गए। दिल्ली कॉलेज की प्रोफ़ेसरी भी क़ुबूल नहीं की।

ये बेपरवाही शायद उस मज़हबी माहौल का असर हो जिसमें इनकी परवरिश हुई थी। शाह अब्दुल अज़ीज़ के ख़ानदान से इनके ख़ानदान के गहरे सम्बंध थे। मोमिन एक कट्टर मुसलमान थे। 1818 ई॰ में इन्होंने सय्यद अहमद बरेलवी के हाथ पर बैअत की लेकिन उनकी जिहाद की तहरीक में ख़ुद शरीक नहीं हुए। अलबत्ता जिहाद की हिमायत में इनके कुछ शेर मिलते हैं। मोमिन ने दो शादियाँ कीं, पहली बीवी से इनकी नहीं बनी फिर दूसरी शादी ख़्वाजा मीर दर्द के ख़ानदान में ख़्वाजा मुहम्मद नसीर की बेटी से हुई। मौत से कुछ अर्सा पहले ये आशिक़ी से अलग हो गए थे। 1851 ई॰ में ये कोठे से गिर कर बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए थे और पाँच माह बाद इनका स्वर्गवास हो गया।

मोमिन उर्दू के उन चंद बाकमाल शायरों में से एक हैं जिनकी बदौलत उर्दू ग़ज़ल की प्रसिद्धि और लोकप्रियता को चार चांद लगे। मोमिन ने इस विधा को ऐसे शिखर पर पहुँचाया और ऐसे उस्तादाना जौहर दिखाए कि ग़ालिब जैसा ख़ुद-नगर शायर इनके एक शेर पर अपना दीवान क़ुर्बान करने को तैयार हो गया। मोमिन ग़ज़ल की विधा के प्रथम पंक्ति के शायर हैं। इन्होंने उर्दू शायरी की दूसरी विधाओं, क़सीदे और मसनवी में भी अभ्यास किया लेकिन इनका असल मैदान ग़ज़ल है जिसमें ये अपनी तर्ज़ के अकेले ग़ज़लगो (ग़ज़ल लिखने वाला) हैं। मोमिन का कारनामा ये है कि इन्होंने ग़ज़ल को उसके वास्तविक अर्थ में बरता और बाहरी की अभिव्यक्ति आंतरिक के साथ करते हुए एक नए रंग की ग़ज़ल पेश की। उस रंग में ये जिस बुलंदी पर पहुंचे वहाँ इनका कोई प्रतियोगी नज़र नहीं आता।

मोमिन के शायराना श्रेणी के बारे में अक्सर आलोचक सहमत हैं कि इन्हें क़सीदा, मसनवी और ग़ज़ल पर एक समान दक्षता प्राप्त थी। क़सीदे में ये सौदा और ज़ौक़ की श्रेणी तक तो नहीं पहुंचते लेकिन इसमें शक नहीं कि ये उर्दू के चंद अच्छे क़सीदा कहनेवाले शायरों में शामिल हैं। मसनवी में ये दया शंकर नसीम और मिर्ज़ा शौक़ के तुल्य हैं लेकिन मोमिन की शायराना महानता की निर्भरता इनकी ग़ज़ल पर है। एक ग़ज़ल कहनेवाले की हैसियत से मोमिन ने उर्दू ग़ज़ल को उन विशेषताओं का वाहक बनाया जो ग़ज़ल और दूसरी विधाओं के बीच भेद पैदा करती हैं। मोमिन की ग़ज़लें ग़ज़ल के रंग की चंचलता, उत्साह, व्यंग्य और प्रतीकात्मकता की सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कही जा सकती हैं। इनकी मुहब्बत यौन प्रेम है जिस पर ये पर्दा नहीं डालते। पर्दे में तो इनकी महबूबा है। इश्क़ की वादी में मोमिन जिन जिन परिस्थितियों व दशाओं से गुज़रे उनको ईमानदारी व सच्चाई के साथ शेरों में बयान कर दिया।सुंदरता और प्रेम के गाल व तिल में इन्होंने कल्पना के जो रंग भरे वो इनकी अपनी बौद्धिक उपज है। इनकी अछूती कल्पना और निराले अंदाज़-ए-बयान ने पुराने और घिसे हुए विषयों को नए सिरे से ज़िंदा और प्रफुल्लित बनाया। मोमिन अपने इश्क़ के बयान में साधारणता नहीं पैदा होने देते। इन्होंने लखनवी शायरी का रंग इख़्तियार करते हुए दिखा दिया कि ख़ारिजी विषय भी तहज़ीब और संजीदगी के साथ बयान किए जा सकते हैं और यही वो विशेषता है जो इनको दूसरे ग़ज़ल कहने वाले शायरों से उत्कृष्ट करती है।

मोमिन ख़ाँ 'मोमिन' की रचनाएँ | Momin Khan Momin Writings

  • मुझे चुप लगी मुद्दआ कहते-कहते / मोमिन
  • सब्रे-वहशत असर न हो जाए / मोमिन
  • तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले / मोमिन
  • दिन भी दराज़ रात भी क्यों है फ़िराके-यार में / मोमिन
  • न देना बोसा-ए-पा गो फ़लक झुकता ज़मीं पर है / मोमिन
  • 'मोमिन' सू-ए-शर्क़ उस बुते-क़ाफ़िर का तो घर है / मोमिन
  • अज़ल जाँ-ब-लब उसके शेवन से है / मोमिन
  • मुझपे तूफ़ाँ उठाये लोगों ने / मोमिन
  • असर उसको ज़रा नहीं होता / मोमिन
  • तुम्हे याद हो के ना याद हो / मोमिन
  • रोया करेंगे आप भी पहरों इसी तरह / मोमिन
  • हम समझते हैं आज़माने को / मोमिन
  • दफ़्न जब ख़ाक में हम सोख़्ता सामाँ होंगे / मोमिन
  • ये हासिल है तो क्या हासिल बयाँ से / मोमिन
  • तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब / मोमिन
  • दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा / मोमिन
  • उलझे न ज़ुल्फ़ से जो परेशानियों में हम / मोमिन
  • न कुछ शोख़ी चली बादे-सबा की / मोमिन
  • मह्व मुझ-सा दमे-नज़्ज़ारा-ए-जानाँ होगा / मोमिन
  • ठानी थी दिल में अब न मिलेंगे किसी से हम / मोमिन
  • हरदम रहीने-कशमकशे-दस्ते-यार हैं / मोमिन
  • जहाँ से शक्ल को तेरी तरस-तरस गुज़रे / मोमिन
  • ख़ुदा की याद दिलाते थे नज़अ में अहबाब / मोमिन
  • आहे-फ़लक-फ़ुगन तेरे ग़म से कहाँ नहीं/ मोमिन
  • वो जो हम में तुम में क़रार था / मोमिन
  • मैं एहवाल-ए-दिल मर गया कहते कहते / मोमिन
  • शब-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त हमें क्या / मोमिन
  • शब तुम जो बज़्म-ए-ग़ैर में आँखें चुरा गये / मोमिन
  • जलता हूँ हिज्र-ए-शाहिद-ओ-याद-ए-शराब में / मोमिन
  • मार ही डाल मुझे चश्म-ए-अदा से पहले / मोमिन
  • डर तो मुझे किसका है के मैं कुछ नहीं कहता / मोमिन
  • नावक अंदाज़ जिधर दीदा-ए-जानाँ होंगे / मोमिन

मोमिन ख़ाँ 'मोमिन' की मृत्यु | Momin Khan Momin Death

मोमिन स्वाभिमानी और संस्कारी थे। उन्हें सबकी इज्जत और प्यार हासिल था। उन्होंने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी ख़ुद ही की थी। वह अच्छे ज्योतिष तो थे ही, अत: उन्होंने बताया कि अब से पाँच दिन, पाँच सप्ताह, पाँच महीने अथवा पाँच वर्ष के बाद मैं दुनिया से कूच कर जाऊँगा। इस भविष्यवाणी के ठीक पाँच महीने बाद उनका इंतकाल हो गया।