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Mirza Ghalib Shayari: मशहूर शायर मिर्ज़ा ग़ालिब की प्यार पर लिखी कुछ सबसे बेहतरीन शायरियां

 

साहित्य न्यूज़ डेस्क, मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) का असल नाम  'मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान' (Mirza Asadullah Baig Khan) था. मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) उर्दू और फ़ारसी के मशहूर शायर थे. मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) को हमेशा से उर्दू का सबसे ज्यादा मशहूर शायर माना जाता है. मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) को उर्दू ग़ज़लों के लिए याद किया जाता है. 1850 में शहंशाह बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय ने मिर्ज़ा ग़ालिब को दबीर-उल-मुल्क और नज़्म-उद-दौला के ख़िताब से नवाज़ा. गालिब एक समय में मुग़ल दरबार के शाही इतिहासकार भी थे. ...

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते है। कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते है।।

-मिर्ज़ा ग़ालिब

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे। वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।

-मिर्ज़ा ग़ालिब

बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है

-मिर्ज़ा ग़ालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था

-मिर्ज़ा ग़ालिब

जब लगा था तीर तब इतना दर्द न हुआ ग़ालिब ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में।

-मिर्ज़ा ग़ालिब

हम न बदलेंगे वक़्त की रफ़्तार के साथ, जब भी मिलेंगे अंदाज पुराना होगा।

-मिर्ज़ा ग़ालिब

यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो

-मिर्ज़ा ग़ालिब

इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे

-मिर्ज़ा ग़ालिब

तुम न आए तो क्या सहर न हुई हाँ मगर चैन से बसर न हुई मेरा नाला सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई

-मिर्ज़ा ग़ालिब

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

-मिर्ज़ा ग़ालिब